मिली भिक्षु शरण
चरणों में है नमन, मिली भिक्षु शरण।
प्राणों के प्राण हम, शासन की शान तुम।
भक्तों के त्राण तुम, मिली भिक्षु शरण ।।
धर्मदूत बनकर आए, गाथा तेरी हम गाएं।
उग्र विरोधी भी छाए, फिर भी कमी न घबराए।
पाया तेरापंथ, गूंजे दिग्-दिगन्त,
अलबेला था वो संत, मिली भिक्षु शरण।।
आगम का करके मंथन, पाया जीवन का दर्शन।
देकर जग को नव चिंतन, बन गया सबका आकर्षण।
तत्वों के राह चले, जिनवाणी पनाह तले,
जीवन की चाह फले, मिली भिक्षु शरण।।
गण-गणपति में हो आस्था, अविनीतों से नहीं वास्ता।
साध्वाचार से हो नाता, श्री भिक्षु मुख ये गाता।
साधन शुद्धि हो, जागे सम्बुद्धि हो,
पापों की शोधि हो, मिली भिक्षु शरण।।
स्मरण करूं मैं आठूं याम, गीतों में ही तेरा नाम।
पीर हरो मेरे घनश्याम, तुम्हीं हो इक आस्था धाम।
भक्ति में दम भरें, मंजिल हम वरें,
संसार हम तरें, मिली भिक्षु शरण।।
लय- जब से मिली नजर