गुणरत्नाकर दिव्य दिवाकर
गुणरत्नाकर दिव्य दिवाकर भिक्षु का दरबार।
हमारा भाग्य फला है, हमें यह संघ मिला है।।
संघ हमारा नयन सितारा पावन प्रज्ञा द्वार।
कल्पतरू खिला-2 है तेरापंथ गण उजला है।।
वीतराग कल्प भिक्षु भाग्य विधायक।
फौलादी संकल्पों के वे महानायक।
अरहंताणं के प्रतिनिधि को वंदन बार हजार।।
बिंदु से सिंधू की अकथ कहानी।
बीज वपन से बरगद यह सहनाणी।
कीर्ति पुरूष की महिमा गरिमा जग सें जय जय कार।।
दीपा के नंदन का आचार उज्ज्वल।
अर्पण जिनवाणी हित सुमेरू ज्यों अविचल।
करूणानिधि कंटालिया गौरव बल्लूशाह दीदार।।
हे प्रभो! यह तेरापंथ जग को सुहाया।
आलोकित नम धरा दिगंत जन-2 ने गाया।
प्रज्ञानिधि से करते प्रभुवर रत्नों की बौछार।।
आत्मा रा कारज सारां मर पूरा देस्यां।
तपस्विनी धम्मगिरी रो आनंद लेस्यां।
पिता पुत्र थिश्पाल फतेह द्वय प्रेरक रम्याकार।।
त्रिभुवन की पीड़ा हरने आर्य भिक्षु आए।
राजपंथ तेरापंथ का वरदान लाए।
दान दया अनुकंपा लौकिक लोकोतर सुविचार।।
लय - स्वर्ग से सुंदर