
श्रमण महावीर
एक राजा ने पांच धर्माचार्यों को आमंत्रित कर कहा, 'मैं गुरु बनाना चाहता हूं। पर मेरा गुरु वह होगा जिसका आश्रम सबसे बड़ा है।' राजा आश्रम देखने निकला। एक आश्रम पांच एकड़ में फैला था, दूसरा दस एकड़ में, तीसरा बीस एकड़ में और चौथा चालीस एकड़ में। राजा ने चारों आश्रम देख लिये। एक आश्रम बाकी रहा। बूढ़ा धर्म-गुरु राजा को नगर से बाहर एक पेड़ के नीचे ले गया। राजा के पूछने पर बताया-
'मेरा आश्रम यही है।'
'इसकी सीमा कहां तक है, महाराज ?'
'जहां तक तुम्हारी दृष्टि पहुंचती है और जहां नहीं भी पहुंचती है, वहां तक।' उसका आश्रम सबसे बड़ा था। वह राजा का गुरु हो गया।
भगवान् साधना के लिए कहीं आश्रम बांधकर नहीं बैठे। वे स्वतंत्रता के लिए निकले, निरंतर परिव्रजन करते रहे। भूमि और आकाश-दोनों पर उनका अबाध अधिकार हो गया।
वे बाह्य जगत् में भूमि का स्पर्श कर रहे थे और अन्तर् जगत् में अपनी आत्मा का। वे बाह्य जगत् में लोक-मान्यताओं का आकलन कर रहे थे और अन्तर् जगत् में सार्वभौम सत्यों का।
उस समय लोग शकुन में बहुत विश्वास करते थे। जो लोग सामाजिक अपराध करने के लिए जाते, वे भी शकुन देखते थे। चोर और डाकू अपशकुन होने पर न चोरी करते और न डाका डालते।
१. पूर्णकलश राढ़ देश का सीमांतवर्ती गांव है। भगवान् वहां से प्रस्थान कर मगध में आ रहे थे। दो चोर उन्हें मार्ग में मिले। वे आदिवासी क्षेत्रों में चोरी करने जा रहे थे। भगवान् को देख वे कुद्ध हो गए। वे भगवान् के पास आए। उन्होंने भगवान् को गालियां देकर क्रोध को थोड़ा शांत किया। फिर बोले, 'नग्न और मुंड श्रमण! आज तुमने हमारा मनोरथ निष्फल कर दिया।'
'मैंने क्या निष्फल किया?'
'हम चोरी करने जा रहे थे, तुमने सामने आकर अपशकुन कर दिया।'
'चोरी करना कौन-सा अच्छा काम है, जिसके लिए शकुन देखना पड़े।'
'चोरी अच्छा काम नहीं है, चोरी अच्छा काम नहीं है' इसकी पुनरावृत्ति में दोनों भान
भूल गए।
भगवान् अन्धविश्वास के प्रहार से मुक्त होकर आगे बढ़ गए।
२. भगवान् को वैशाली में भी अन्धविश्वास का शिकार होना पड़ा। वे लुहार के कारखाने में ध्यान कर खड़े थे। लुहार छह महीनों से बीमार था। वह स्वस्थ हुआ। अपने यन्त्रों को लेकर वह काम करने के लिए कारखाने में आया। उसने देखा, कोई नंगा भिक्षु कारखाने में खड़ा है। अपशकुन का विचार बिजली की भांति उसके दिमाग में कौंध गया। वह कुद्ध होकर अपने कर्मचारियों पर बरस पड़ा।
'इस नग्न भिक्षु को यहां ठहरने की अनुमति किसने दी?'
'हम सबने ।'
'यह मुझे पसन्द नहीं है।'
'हमें पसन्द है।'
'इसे निकाल दो।'
'हम नहीं निकालेंगे।'
'तुम निकाल दिए जाओगे।'
'यह हो सकता है।'