गण गौरव महकाया
गण गौरव महकाया, गुरूवर चरणन में।
संयम सफल बनाया, गुरूवर चरणन में।
गुरूवर चरणन में, गण नंदनवन में, भैक्षव शासन में।।
धन तेरस के शुभ दिन तुमको, दीक्षा का आदेश मिला था।
पुत्री सुत पति संग चैन्नई में, संयम का शुभ सुमन खिला था।
सिद्धार्थ प्रथा ने बुलाया, गुरूवर चरणन में।।
लगभग छः वर्षों की अवधि, उत्तम समता अल्प थी उपधि।
तन से मानो मोह नहीं था, सदा निर्जरा से थी प्रीति।
पौरूष दीप जलाया, गुरूवर चरणन में।।
गुरू दीक्षा कल्याणक अवसर, इक्यावन तप भेंट शुभंकर।
किस ने सोचा निज जीवन को, भेंट चढ़ा देगी वो तपकर।
संकल्प अटूट निभाया, गुरूवर चरणन में।।
परम कुपालु गुरू उपकारी, भव-भव में रहना आभारी।
प्रमुखाश्रीजी की वत्सलता, सींच रही थी तप की क्यारी।
सतियों ने साज दिलाया, सूरत में इतिहास बनाया,
गुरूवर चरणन में।।
तर्ज : तूने मुझे बुलाया शेरावालिए