स्वर्ण कसौटी ज्यों निखरी
शत-शत वंदन नेमानदंन, किया अमित उपकार है।
किन शब्दों में व्यक्त करें प्रभो! दिल से हम आभार हैं।।
चेन्नई पावस में दे दीक्षा, किया अशोक सबको भगवन,
बन गई पुष्पा धैर्यप्रभा कौशल तेजस्वी भाई बहन।
महाश्रमण बरतारे तर गया, यह बोहरा परिवार है।।
सौभागी थी धैर्यप्रभाजी, सेवा का अवसर पाया,
नंदन वन मुंबई और सूरत पावस मौका मन भाया।
लगातार दो पावस में, प्रभु सन्निधि का उपहार है।।
दृढ़ सकंल्पी धैर्यप्रभाजी, तप समरांगण में उतरी,
वर्षीतप में आयम्बिल तप स्वर्ण कसौटी ज्यों निखरी।
छय्यालीस उपवास अमास, सोमवती भव पार है।।
बद्धांजलि कर श्रद्धार्पण हम, सद्गुण की स्मृतियां करते,
दिया स्हाज जिन जिन सतियों ने, भक्ति से वंदन करते।
महाउपकारी भैक्षवशासन, पग पग जय-जयकार है।।
तर्ज : कलियुग बैठा मार कुंडली