जीवन धन्य तुम्हारा
जीवन धन्य तुम्हारा।
तप सरिता में नहाकर तुमने कल्मष दूर उतारा।।
पहले दिन उपवास दूसरे दिन आयंबिल चलता,
साढ़े दस महिनों से लगातार तप तरूवर पलता।
उस पर यह बावन दिन का तप वंदन बार हजारां।।
महातपसी गुरू महाश्रमण का मंगल सुखमय साया,
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा का शुभाशीष वर पाया।
साध्वीवर्या महर नजर पा चमका भाग्य सितारा।।
उच्च भावना उच्च साधना उच्च मनोबल तेरा,
क्षुधा परीषह सहफर तुमने तोड़ा कर्मन घेरा।
बार-बार अनुमोदन करता साध्वी परिकर सारा।।
तप को सखा बना दुर्लभ जीवन का सार निकाला,
अनासक्ति की सघन साधना पाया दिव्य उजाला।
हिम्मत की कीमत जग में धारा जो पार उतारा।।
हेमरेखा मुक्तिश्री प्रसन्नप्रभा जी आज बधायें,
धैर्यप्रभा जी! बढ़ो चढ़ो तप सरणी मंगल गायें।
सेवाभावी बेटी का सहयोग मिला मनहारा।।
तर्ज : संयममय जीवन हो