तप से जीवन महकाया
तप से जीवन महकाया, गण का गौरव विकसाया।
आत्मा को शुद्ध बनाया, धैर्यप्रभाजी।।
सुख सुविधाएं छोड़ी सारी, कठिन राह को अपनाया,
परिकर संग दीक्षा ले तुमने महाश्रमण साया पाया।
तप की गंगा मन भाई, हर दिन तुम इसमें न्हायी,
अन्तर्मन में हरसाई---धैर्यप्रभाजी।।
रिश्तों नातों को त्यागा, आत्मा से जोड़ी इकतारी,
वचनयोग से दूरी वाणी संयम से मैत्री प्यारी।
आगम स्वाध्याय सुहाया, बंधन को शिथिल बनाया,
संयम का स्वाद भाया---धैर्यप्रभाजी।।
सूरत चौमासे में तेरी, जागी कैसी पुण्याई,
गुरूकुलवासी बनकर तुम आत्मवासी बन सुख पाई।
इक इक कर कदम बढ़ाया, सपना साकार बनाया,
कर्मों का भार घटाया---धैर्यप्रभाजी।।
बनी उऋण सिद्धार्थप्रभा, मां के इच्छित अरमान फले,
कोशल से संयम तेजस्वी बना लिया गुरू छांव तले।
अनिकेत सफल बन पाया, सार्थक निज नाम बनाया,
पौरूष का दीप जलाया---धैर्यप्रभाजी।।
तर्ज : प्रज्ञा के दीप जलेंगे