संयम जीवन कर सफल
नन्दन वन के तुल्य है, भैक्षव गण की ख्यात।
वीतराग सदृश मिले, महाश्रमण गणनाथ।।
महाश्रमण गुरूचरण में, दीक्षा सपरिवार।
महाश्रमण सान्निध्य में, की है जय जय कार।।
पति पत्नी सुत पुत्रियां, पांचों बड़े विनीत।
पति-पत्नी पर भव चले, गाएं मंगल गीत।।
संयम जीवन कर सफल, धैर्यप्रभा जी आज।।
तप में देवलोक सुन करके, होता सात्विक नाज।।
चलते फिरते कर लिया, भव-भव से कल्याण।।
मुनि अनिकेत, धैर्यप्रभा, चले बढ़ा गणशान।।
मुनि कौशल सिद्धार्थप्रभा, तेजस्वी कुल तीन।
उनकी गण को देन है, तीनों बडे़ कुलीन।।
मात-पिता गुरूदेव हैं, सतत रहे यह ध्यान।
उनके आशीर्वाद से, होगा आत्मोत्थान।।
स्मृति सभा में कर रहे, हृदय खोल गुणगान।
जल्दी से जल्दी वरे, सतिवर पद निर्वाण।।