धैर्यप्रभा जी का जीवन वैराग्यमय था
तपस्विनी साध्वी धैर्यप्रभा जी का जीवन बहुत ही वैराग्यमय जीवन था। वे प्रत्येक क्षण का जागरूकता से अंकन करती थी। उपवास के साथ आयम्बिल करती, आयम्बिल में जो मिल गया उसे समता भाव से, अनासक्त भाव से, मौन सहित ग्रहण करती थी। आयम्बिल तप के साथ भी चरम प्रत्याख्यान करती। उपवास में भी मौन रखती थी, प्रति दिन प्रहर करती थी। कभी भी पोरसी को नहीं छोड़ा, चाहे कितनी भी प्यास लग जाये। स्वावलंबी थी, साध्वी हेमरेखाजी को कहती कि आप तेला करें, पारणा मैं लाउंगी, आप के लिए ओघा भी बना दूंगी।
साध्वी हेमरेखा जी के पास आते ही कमरे में आते हो कहा - यह कमरा बहुत ही रमणीय लगता है, स्थान बहुत ही सौम्य लगता है। कमरे में आते ही मेरे मन में आनंद की अनुभूति होती है। वे कमरे में एक ही स्थान पर अपना जप-तप स्वाध्याय में रमण करती। सभी साध्वियों से कहती कि मुझे आप लोग अधिक से अधिक आगम स्वाध्याय सुनाओ। साध्वी हेमरेखा जी भगवती सूत्र के कुछ खंड टिप्पण सहित पढाए, वे ध्यान पूर्वक सुनती। चौबीसी, आराधना का स्वाध्याय प्रतिदिन करती। आचार बोध, संस्कार बोध, तेरापंथ प्रबोध, तुलसी प्रबोध, महाप्रज्ञ प्रबोध, 52 बोल खोल कर सुनाया। अनेकों सूत्र, स्तोत्र, स्तवन आदि का स्वाध्याय एवं जप आदि का प्रयोग साध्वी श्री करवाते। साध्वी हेमरेखा जी के माध्यम से साध्वी जिनरेखाजी एवं साध्वी निर्वाणश्री जी को निवेदन करवाया कि मेरे लिए तप का गीत नहीं बनाना है, आप तो मुझे दशवेैकालिक सुना देना। साध्वीप्रमुखाश्री प्रातः दर्शन देने आते तो गीत सुनाते। सबको ध्यान से, जागरूकता से सुनते थे।
साध्वी हेमरेखाजी ने 46 दिनों में स्वयं ने स्वाध्याय करते हुए उनको भी स्वाध्याय करवाया। इस प्रकार साध्वी धैर्यप्रभाजी का अप्रमत्त जीवन रहा। साध्वीश्री जी के जीवन से हम भी अप्रमत रहने की प्रेरणा प्राप्त करें। उनकी आत्मा अति शीघ्र मोक्ष पंथ को प्राप्त करे।