कुशलता के लिए प्रमाद से बचने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कुशलता के लिए प्रमाद से बचने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

सत्य सागर में अवगाह कराने वाले आचार्य श्री महाश्रमणजी ने आगमवाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि आयारो आगम में कहा गया है- जो कुशल होता है, उसका प्रमाद से क्या मतलब? कुशल आदमी को प्रमाद नहीं करना चाहिए। बारहवें गुणस्थान के साधु में प्रमाद नहीं होता। वीतराग के दो प्रकार हैं- छद्मस्थ ओर केवली वीतराग। तेरहवें गुणस्थान में सयोगी प्रवृत्ति है। केवली के भी द्रव्य रूप में मन होता है। अनुत्तर विमान के देव के कोई प्रश्न होता है, उसका उत्तर वीतराग दे देते हैं पर वे देव वहीं बैठे अवधिज्ञान से उत्तर जान लेते हैं। ग्यारहवें, बारहवें गुणस्थान के वीतराग छद्मस्थ वीतराग होते हैं। चौबीसी के गीत में कहा गया है-
सुर अनुत्तर विमान ना सेवै रे, प्रश्न पूछ्या उत्तर जिन देवै रे।
अवधिज्ञान करी जाण लेवै, प्रभु नमिनाथ जी मुझ प्यारा रे।।
चौबीसी में स्तुति के साथ तत्व ज्ञान की बातें भी जयाचार्य ने निहित की है। ग्यारहवें गुणस्थान वाला उपशान्त वीतराग थोड़े समय के लिए बनता है। वह अस्थायी वीतराग है। ग्यारहवां गुणस्थान बन्द गली में घुसे व्यक्ति के समान है, जो वापस मुड़ेगा। क्षपक श्रेणी वाला वीतराग 8वें से 9वें, फिर दसवें फिर सीधा बारहवें से जायेगा। कषाय का क्षय करता हुआ आगे बढ़ेगा। नीचे गिरेगा नहीं। तेरहवें फिर चौदहवें में जाकर मोक्ष को प्राप्त करेगा। कुशल वीतराग या वीतराग में प्रवृत्त व्यक्ति होता है। उनको उपदेश देने की अपेक्षा नहीं है। जो वीतरागता की साधना में लगे हुए है, उन्हें उपदेश देने की अपेक्षा है कि वे प्रमाद न करें। साधु का समय प्रमाद में न बीते। चार विकथाओं से व महाविगय से बचें। गलत चीज की गिरफ्त में जाएं ही नहीं, सावधान रहें। साधु-साध्वी, समणी या श्रावक-श्राविका सभी वीतरागता की साधना करने वाले होते हैं।
गलत चीज का नशा न हो। उससे छुटकारा पाने का प्रयास करें। चार कषायों में प्रवृत्त रहना भी प्रमाद है। हमारे कषाय प्रतनू बने। किसी को धोखा देने का प्रयास न करें। बुद्धिमता होने पर उसका उपयोग अच्छ कार्य में होना चाहिये। बुद्धि एक उपलब्धि है। वह बुद्धि सराहने लायक है जो जिन धर्म का सेवन कराती है। कार्य में कुशलता रहे, व्यवस्था पक्ष में भी कुशलता रहे तो कम समय में कार्य अच्छी तरह सम्पन्न हो सकता है।
भाषण के दो तरीके होते हैं- बाह्य और आन्तरिक। बाह्य यानि कैसे खड़ा है, भाषा कैसी है। आभ्यंतर हिस्सा है ज्ञान। दोनों तरीके ठीक हैं तो भाषण में कुशलता रहती है। भाषण देने से पहले विषय का चयन करें फिर उस पर कुछ तैयारी हो। हर चीज में कुशलता हो। लेखन में भी उपयुक्त सामग्री हो। सेवा में भी कुशलता हो। लेने वाले और देने वाले दोनों में कुशलता हो। कार्य में जितना कौशल्य होता है, तो कार्य सुसम्पन्न हो सकता है। अपने धर्म व व्रतों में भी कुशलता हो। सामायिक में भी पूरी सावधानी रहे। स्वयं अपना सुधार करें, दूसरों से भी सुधार का ज्ञान लिया जा सकता है। दूसरों को देखकर गुणों को ग्रहण किया जा सकता है। संस्थाओं की कार्य पद्धति में भी कुशलता रहे। अशुद्ध अर्थ न आये। सब में नैतिकता का भाव रहे। संस्थाओं में मैन पावर, मनीपावर, मैनेजमेंट पावर और मोरेलिटी पावर भी रहे। हमें कुशल रहना है तो प्रमाद से बचने की अपेक्षा रह सकती है। कार्य का भार भले ज्यादा हो पर दिमाग में ज्यादा भार न हो। शांति से काम करें, आवश्यक को प्राथमिकता देवें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने TPF सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अधिवेशन का उद्देश्य होता है कि वे अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में चिन्तन करें। TPF में शिक्षित लोग हैं और उनमें श्रद्धा भी है। श्रद्धा और तर्क की युति व्यक्ति को विकास की ओर अग्रसर करती है। TPF आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के दिमाग की उपज है। यह संस्था निरन्तर विकास कर रही है। धर्मसंघ के अनेक धार्मिक-आध्यात्मिक व सामाजिक कार्य कर रही है। महाप्रज्ञ नोलेज सेन्टर की योजना से समाज के लड़कों को लाभ मिल सकता है। हमें भीतरी जगत में प्रवेश कर भीतरी शक्तियों का जागरण करना है। साध्वीवर्या जी ने कहा कि चतुर्विशंति स्तव की अंतिम गाथा विशिष्ट गाथा है। इस गाथा में तीन बातें, सिद्ध स्वरूप की, प्रकृति से भगवान की तुलना और भगवान से सिद्धि की प्रार्थना की गई है। सूर्य से भी अधिक प्रकाश करने वाले, चन्द्रमाओं से निर्मलतम और सागर से भी गंभीर तीर्थंकर भगवान होते हैं। व्यक्तित्व निर्माण की भी ये तीन बातें महत्वपूर्ण है। हमें नकारात्मक भावों को दूर कर निर्मलता को बढ़ाना है।
भगवान महावीर मेमोरियल समिति के अध्यक्ष के एल जैन आदि ने पूज्यवर को समग्र जैन समाज चतुर्मास सूची पुस्तक समर्पित की। बाबूलाल जैन ने इस पुस्तक के सन्दर्भ में जानकारी दी। विजयकृष्ण नाहर ने दो पुस्तकें 'आचार्य संत भीखणजी पाली में' तथा 'आचार्य भीखण के मार्ग के आधार पुरुष हेमराजजी' पूज्यवर को समर्पित की। पूज्य प्रवर की मंगल सन्निधि में TPF के नव निर्वाचित अध्यक्ष हिम्मत मांडोत एवं नवीन टीम के शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन हुआ। पूज्यवर ने नई टीम को आशीर्वचन प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।