नोखा में जैन भागवती दीक्षा का भव्य आयोजन

गुरुवाणी/ केन्द्र

नोखा में जैन भागवती दीक्षा का भव्य आयोजन

तेरापंथ धर्म संघ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की आज्ञा से 'शासन गौरव' साध्वी राजीमतीजी के सान्निध्य में नोखा में जैन भागवती दीक्षा का भव्य आयोजन किया गया। साध्वी राजीमतीजी ने नमस्कार महामंत्र के मंगल स्वरों के साथ दीक्षा महोत्सव कार्यक्रम का शुभारंभ किया। तेरापंथ महिला मंडल नोखा ने समवेत स्वरों में मंगलाचरण की प्रस्तुति दी। साध्वी वृन्द द्वारा सामूहिक गीतिका के माध्यम से आचार्य भिक्षु चरमोत्सव व मुमुक्षु मानवी की दीक्षा पर भावना व्यक्त की गई। 'शासनश्री' साध्वी समताश्री जी ने युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के एवं साध्वी कुसुमप्रभाजी ने साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी के संदेश का वाचन किया।
'शासन गौरव' साध्वी राजीमतीजी ने खड़े होकर परम पूज्य युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी को वंदन करते हुए कहा कि गुरुदेव ने जो दायित्व दिया है, उसे उनके आशीर्वाद के साथ शुरू कर रही हूं। एक घटना का उल्लेख करते हुए साध्वीश्री ने यह भावना प्रकट की कि जब तक मैं मंजिल तक नहीं पहुंचूं, मानवी मंजिल तक नहीं पहुंचे, गुरुदेव ! आप हमारा हाथ पकड़े रखें। साध्वीश्री ने पुनः आंचलिया परिवार की मौखिक आज्ञा ली व बहन मानवी से उसकी दीक्षा तैयारी के बारे में पूछा। तत्पश्चात णमोत्थुणं पाठ कर आचार्य श्री भिक्षु, आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी को वंदन कर सामायिक पाठ के साथ दीक्षा संस्कार प्रारंभ किया। आर्ष वाणी का उच्चारण करते हुए सभी सावद्य कार्यों का त्याग कराया। सामायिक चारित्र ग्रहण करने के बाद अतीत की आलोचना करवाई गयी।
तत्पश्चात साध्वीश्री ने केश लोच संस्कार की रस्म पूरी कर रजोहरण प्रदान करते हुए कहा - 'किसी दिन आचार्य श्री ने यह रजोहरण मुझे प्रदान किया था आज उनके नाम का रजोहरण मैं तुम्हें प्रदान कर रही हूं। तुम ज्ञान, दर्शन, चरित्र के साथ क्षमा, मुक्ति व अनासक्ति का अभ्यास करो।' नामकरण संस्कार के अंतर्गत पूज्य प्रवर के इंगित अनुसार साध्वीश्री ने नवदीक्षित साध्वी का नाम साध्वी मनोज्ञप्रभा घोषित किया। नव दीक्षित साध्वी को प्रेरणा देते हुए साध्वीश्री ने कहा कि मनोज्ञ का अर्थ है मन को जानने वाला। तुम्हें मन को जानने की यात्रा शुरू करनी है, वीतरागता की भूमिका तक पहुंचना है। नवदीक्षित साध्वीजी को आचार्यप्रवर के निर्देशानुसार साध्वी राजीमती जी के सिंघाड़े में उनकी सहवर्तिनी, सहयोगी साध्वी के रूप में नियोजित किया गया।
इससे पूर्व मुमुक्षु भाविका ने दीक्षार्थी बहन मानवी का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था से मोतीलाल जीरावाला ने आज्ञा पत्र का वाचन किया तथा मुमुक्षु मानवी के माता-पिता सुनीता अरुण कुमार आंचलिया ने साध्वी को श्री आज्ञा पत्र निवेदित किया। दीक्षा के लिए उत्सुक मुमुक्षु मानवी ने अपने विचारों की भाव भरी प्रस्तुति दी।
साध्वीश्री ने धर्म परिषद को प्रेरणा देते हुए कहा कि स्वयं को नहीं जानना सबसे बड़ा पाप है। आत्मा सबसे निकट भी है और सबसे दूर भी है। उसे पाने का एक ही उपाय है दीक्षा। दीक्षा लेने का अर्थ है- स्वयं के निकट रहना, आत्मा के निकट रहना। जीवन की दो धाराएं हैं- भोग एवं त्याग। भोग अति परिचित पथ है, त्याग नया पथ है। त्याग सुख छुड़ाने के लिए नहीं अपितु दुःख से बचाने के लिए है। साध्वी श्री ने आगे कहा कि शरीर और आत्मा सभी के पास है। इन दोनों का हित संयम के द्वारा किया जा सकता है। सांसारिक कार्यों से मुक्त होकर संयम की ओर प्रस्थान करना दीक्षा है। भोग से योग की ओर जाना, साधनामय जीवन जीना दीक्षा है। 'शासनश्री' साध्वी शशिरेखाजी ने नव दीक्षित साध्वी को संयम साधना के प्रति जागरूक हो संयम की सांगोपांग साधना करने की प्रेरणा दी। समणी कुसुमप्रज्ञा जी ने लोहे के चने मोम के दांतों से चबाने जैसा संयम पथ बताते हुए सिंह वृत्ति से साधुत्व पालने की प्रेरणा दी। कुशल संचालन करते हुए मुमुक्षु शांता जैन ने दीक्षा क्या? क्यों? कैसे? व तेरापंथ की विलक्षण दीक्षा के बारे में विस्तार से बताया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष शुभकरण चौरडिया, मंत्री मनोज घीया, उपाध्यक्ष लाभचंद छाजेड़, नगर पालिका उपाध्यक्ष निर्मल भूरा ने यह पावन अवसर प्रदान करने पर आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रति कृतज्ञता के भाव व्यक्त किए। इस अवसर पर महासभा अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया, अमृतवाणी संयोजक रूपचंद दुगड, विकास परिषद के सदस्य पदमचंद पटावरी, दिल्ली सभा अध्यक्ष सुखराज सेठिया, कमलचंद ललवानी, आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। भागवत आचार्य प्रदीप महाराज, धर्मेश महाराज, नोखा विधायक सुशीला डूडी, पूर्व संसदीय सचिव कन्हैयालाल झंवर, आसकरण भट्ट आदि अनेक गणमान्य जन एवं विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधि सहित अनेकों लोग जैन भागवती दीक्षा के साक्षी बने।