पदार्थों के आसेवन में न हो आसक्ति का भाव : आचार्यश्री महाश्रमण
आर्हत वांग्मय के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम वाणी की देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि सुख और दुःख प्रत्येक होता है, अपना-अपना होता है। कर्मवाद का सिद्धांत सुख-दुःख की प्राप्ति के संदर्भ में ध्यान में लाने के लिए प्रतीत हो रहा है। दुनिया में प्राणी दुःख भोगता है, तो सुख भी भोगता है। दुःख-सुख के लिए हमारी आत्मा ही जिम्मेदार है। जैन दर्शन में आठ कर्म बताये गये हैं, उन कर्मों के आलोक में हम जीवन की व्याख्या कर सकते हैं। किसी में ज्ञान की मन्दता है तो ज्ञानावरणीय कर्म का उदय होता है। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से ज्ञान का विकास होता है। असात वेदनीय कर्म के उदय से शरीर में वेदना हो सकती है। शरीर सक्षम और मनोज्ञ है तो मानना चाहिये कि सात वेदनीय कर्म का उदय है।
मोहनीय कर्म के उदय से चारों कषाय बढ़ सकते है। कई व्यक्ति शांत स्वभाव के होते हैं, संतोष और सरलता का जीवन जीते हैं तो लगता है उनके मोहनीय कर्म का अभाव या क्षयोपशम है। आयुष्य कर्म की शुभता-अशुभता से आयुष्य ज्यादा या कम हो सकता है। शुभ नाम कर्म के उदय से प्रतिष्ठता मिल सकती है। शरीर सुन्दर हो सकता है। अशुभ नाम कर्म के उदय से इससे विपरीत स्थिति हो सकती है। शुभ गौत्र कर्म के उदय से उच्च कुल व अशुभ गौत्र कर्म के उदय से नीच कुल प्राप्त हो सकता है। अन्तराय कर्म के उदय से बाधाएं और क्षयोपशम से अनुकूलताएं प्राप्त हो सकती है।
पूज्यप्रवर ने आगे फ़रमाया - आयारो में कहा गया है कि सुख और दुःख को जानकर समझा जाता है, कि सबका कर्म अपना-अपना होता है। आत्मा ही कर्मों की कर्ता और भोक्ता है। कर्म का फल अपना-अपना होता है। कई जन्मों पहले बन्धे कर्म भी फल देने वाले हो सकते हैं। बड़े-बड़े महापुरुषों को भी अपने किये कर्म भोगने होते हैं। भगवान महावीर के जीवन में तो कितने उपसर्ग आये, तीर्थंकर बनने के बाद भी प्रतिकूलता की स्थिति आ गयी। कर्म बड़ा बलवान होता है। कर्म से बड़ा निष्पक्ष कोई नहीं होता। कर्म पक्षपात नहीं करता। पूर्व कृत कर्म से निरपराध को भी सजा मिल सकती है। धन, दौलत, पदार्थों के सेवन में आसक्ति न हो, अनासक्ति हो तो हम कर्मों के बन्ध से बच सकते हैं। कर्म छोटे-बड़े किसी को नहीं देखता। अनुकूलता और प्रतिकूलता में समता भाव रहे। आसक्ति का आसेवन नहीं करना चाहिए। सामायिक साधना ग्रुप सूरत ने पूज्यवर के समक्ष डायरेक्टरी लोकार्पित की। अनेकों तपस्वियों ने आचार्य प्रवर से तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। किशोर मंडल व कन्यामंडल ने चौबीसी के गीतों की प्रस्तुति दी। कमल रामपुरिया, सरोज बांठिया ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।