अभातेममं के तत्वावधान में चित्त समाधि शिविर के विभिन्न कार्यक्रम
डॉ. साध्वी शुभप्रभाजी के सान्निध्य में 'चित्त समाधि शिविर' का आयोजन किया गया। साध्वी श्री ने कहा- आचारांग के अनुसार तीन अवस्थाएं होती हैं - बचपन, यौवन, बुढ़ापा। बचपन हो तो श्रीकृष्ण जैसा नटखट, यौवन श्री राम की तरह मर्यादावान, बुढ़ापा हो महादेव की तरह वैराग्यपूर्ण। अगर ऐसा जीवनयापन करेंगे तो सदा सुखी रहेंगे। यह पुरुष अनेक चित्तवाला होता है। कोई प्रसन्न, कोई खिन्न, कोई विक्षिप्त आदि आदि। घरों में वृद्ध माता-पिता असमाधि महसूस कर रहे हैं तब चिन्तनीय प्रश्न होता है कि कैसे वे शांति, समाधि सुख का अनुभव कर सकें ताकि जीवन यात्रा सफलता से व्यतीत हो। बुजुर्ग घर की रौनक एवं छांह होते हैं। वृद्ध वृक्ष से फल-फूल नहीं भी मिले पर छांह तो मिलती ही है। वैसे ही बुजुर्ग घर में हो तो आप निश्चिन्तता से जीवन यापन कर पाएंगे। हमें कुछ उसूलों को अपनाना होगा - १. उठते ही मां पिता के प्रणाम कर आशीर्वाद पाएं। २. बुजुर्गों के लिए कुछ समय निकालें यानी उनके साथ बैठ बातचीत करें। ३. सोने से पहले उनके हालचाल पूछले। हो सके तो एक टाइम यानी शाम का भोजन एक साथ बैठ करें। मां, बाप आपसे कुछ नहीं चाहते, मात्र आत्मीयतापूर्ण व्यवहार की अपेक्षा करते हैं। उनको जितना बन सके आध्यात्मिक सहयोग दे। साध्वी कान्तयशाजी ने "बुढ़ापा कोई लेवै तो तनै बेच दूं" गीत का संगान किया। साध्वी अनन्यप्रभाजी ने सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा करवाई। सभाध्यक्ष राजेश बुच्चा, ज्ञानशाला आंचलिक प्रभारी कान्ता चिण्डालिया ने अपने अनुभव साझा किए। म.म. अध्यक्षा सुषमा पींचा ने स्वागत भाषण एवं म.म. की बहनों एवं ज्ञानशाला के बच्चों ने सुन्दर 'ऐक्ट' की प्रस्तुति से सबको रोमांचित बना दिया। जयश्री सेठिया ने मंगलाचरण किया। सोमलता दुगड़ ने कुशलता से कार्यक्रम का संचालन किया।