संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

तेरापंथ सभा भवन में विराजित युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासनश्री' साध्वी सत्यवतीजी आदि ठाणा 4 के सान्निध्य में पर्युषण पर्व नवाह्निक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पर्युषण पर्व का पहला दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया गया। जिसके अन्तर्गत 'शासनश्री' साध्वी सत्यवती जी ने पर्युषण पर्व की महत्ता को समझाते हुए अपनी रसना पर विजय पाने की प्रेरणा दी। साध्वी शशिप्रज्ञाजी ने खाद्य-अखाद्य और विरोधी व अविरोधी पदार्थ की जानकारी प्रदान करते हुए इनके संयम की साधना में सहयोग को उल्लेखित किया। दूसरे दिन स्वाध्याय दिवस के उपलक्ष में साध्वीश्री ने भगवान महावीर के भवों का वर्णन करते हुए कहा- स्वाध्याय भावों कि पवित्रता को बढ़ाने का अच्छा माध्यम है। साध्वी पुण्यदर्शना जी ने कहा कि स्वाध्याय विवेक जागृति, व्यवहार परिवर्तन का आधार है।
पर्युषण पर्व का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में मनाया गया। साध्वीश्री ने भगवान महावीर के भवों का वर्णन करते हुए कहा कि विषमता से समता की ओर जाने का नाम सामायिक है। साध्वी शशिप्रज्ञाजी ने गीत का संगान करते हुए कहा सब जीवों को आत्मतुल्य मानने का नाम सामायिक है। चतुर्थ दिन वाणी संयम दिवस के अन्तर्गत साध्वी सत्यवती जी ने कहा- शब्दों का तोल-तोल कर उपयोग करना चाहिए जिससे हम मृदुभाषी बन सकें। साध्वी पुण्यदर्शना जी ने कहा कि हमारी बोली बाँसुरी की तरह मीठी व सीधी होनी चाहिए।
पर्व का पाँचवा दिन व्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया गया। शासनश्री ने कहा कि त्याग व व्रत से हम हमारी चेतना को निर्मलता की ओर अग्रसर कर सकते हैं। साध्वी रोशनीप्रभा जी ने कहा व्रत से दिनचर्या के उत्थान के साथ-साथ हमारे चारित्र का भी उत्थान हो सकता है। भावों की निर्मलता को बढ़ाने वाला छठा दिन जप दिवस के रूप में मनाया गया। साध्वीश्री ने भगवान महावीर के भवों का वर्णन करते हुए कहा कि जप अर्हत् के समान बनने का सरस माध्यम है। साध्वी पुण्यदर्शना जी व साध्वी शशिप्रज्ञाजी ने गीतिका के द्वारा भावों को व्यक्त करते हुए कहा कि अजपाजप से हम अपने भावों को पवित्र व सकरात्मक बनाये रख सकते हैं। महापर्व का सातवां दिन ध्यान दिवस के रूप में मनाया गया। शासनश्री ने कहा कि ध्यान भावों की उज्वलता का नाम है। साध्वी शशिप्रज्ञा जी ने ध्यान के हेतु जैसे वैराग्य, अनासक्ति के बारे में बताते हुए कहा कि चेतन मन को सुलाने व अवचेतन मन को जगाने का नाम ध्यान है। पर्युषण पर्व का आठवां दिन संवत्सरी महापर्व के रूप में मनाया गया। 'शासनश्री' साध्वीश्री सत्यवतीजी ने तीर्थंकर व केवली की जानकारी प्रदान करवाई एवं साध्वी पुण्यदर्शना जी, साध्वी शशिप्रज्ञाजी व साध्वी रोशनीप्रभा जी ने अलग-अलग विषयों के माध्यम से दृढ़ श्रद्धा, भक्ति, कर्म उदय व साध्वियों के प्रेरक प्रसंग से सबको भावित किया।
महापर्व का अंतिम दिन क्षमायाचना के रूप में मनाया गया। सम्पूर्ण श्रावक समाज ने गुरुदेव के प्रति अनंत कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए क्षमायाचना की। सभा अध्यक्ष अशोक तातेड़, स्वरुप तातेड़, फलसूण्ड ज्ञानशाला व कन्या मण्डल ने अपने भाव व्यक्त किए। फलसूण्ड समाज ने अपने आप को निर्जरा से भावित करने के लिए अखण्ड जाप व अच्छी संख्या में पौषध व उपवास कर अपने आप को लाभान्वित किया।