संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

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संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण

पर्युषण महापर्व अष्टान्हिक कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रथम दिवस खाद्य संयम के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर साध्वी कुन्दनरेखा जी ने कहा संयम आत्मशुद्धि का महान उपक्रम है। उसमें भी खाद्य संयम अर्थात् रसनेन्द्रिय को वश में करना दुष्कर कार्य है। पॉंचों इन्द्रियों में रसनेन्द्रिय को जीतने का अर्थ है सभी इन्द्रियों को जीत लेना। आगमों में कहा है कि शरीर टिकाए रखने के लिए भोजन की आवश्यकता है, फिर भी क्रोधादि कषायों से युक्त होकर भोजन न करें।
स्वाध्याय दिवस अवसर पर साध्वी कुन्दनरेखाजी ने कहा- स्वाध्याय स्वयं को जानने, पहचानने, मानने और समझने का सर्वोत्तम उपक्रम है। स्वाध्याय का असली अर्थ यही है कि आत्मा से जुड़ने का अभियान प्रारंभ हो जाये। साध्वी कल्याणयशाजी ने कहा- स्वाध्याय ज्ञान की गंगोत्री है, जन-जन के पापों का प्रक्षालन करता है स्वाध्याय। यह एक ऐसी तपस्या है जिसके जरिये भव-भ्रमण मिटाया जा सकता है। नोएडा महिला मण्डल की बहनों द्वारा मंगलाचरण किया गया।
सामायिक दिवस पर साध्वी श्री ने कहा- सामायिक समता का महानतम व्यापार है, जो कर्मों की निर्जरा के द्वारा आत्मा का शोधन करता है और संवर के द्वारा आने वाले कर्मों को रोकता है। संवर और शोधन के द्वारा आत्मा के निज गुण ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप के मार्ग प्रशस्त होने लगते हैं।
वाणी संयम दिवस पर साध्वी श्री ने कहा कि संयम ऐसा भाव है, जिसमें सभी समस्याओं का समाधान निहित है। तीन प्रकार के योगों में वाणी का अपना प्रभाव है, यह चाहे तो दुश्मन को मित्र और मित्र को दुश्मन बना सकती है। साध्वी कल्याणयशाजी ने कहा - मधुर वाणी से सभी आकर्षित होते हैं और अपनत्व भी बढ़ता है।
व्रत चेतना दिवस पर साध्वी श्री ने कहा कि युगीन परिस्थितियों में समाधान है अणुव्रत। छोटे छोटे व्रतों द्वारा आत्मा के उत्थान का ज्ञान है अणुव्रत। इस अवसर पर साध्वी सौभाग्ययशाजी ने कहा- अणुव्रत जीवन का दर्शन है। जहां मूल्य स्थिर रहते हैं, समन्वय एवं सामंजस्य की चेतना व्याप्त रहती है वहां अन्य दूषित प्रवृत्तियों को बढ़ने का मौका नहीं मिल पाने से सोच सकारात्मक बन जाती है।
जप दिवस पर साध्वी श्री ने कहा आत्म शोधन का सरलतम उपाय है जाप। जप करने से जागरूकता तो बढ़ती ही है, एकाग्रता के साथ मानसिक वृत्तियों का शोधन भी होता है।
ध्यान दिवस पर साध्वी श्री ने कहा कि स्वयं के द्वारा स्वयं तक पहुॅंचने की प्रक्रिया है प्रेक्षाध्यान। कायोत्सर्ग से प्रारंभ होने वाला यह ध्यान श्वासप्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा, लेश्या ध्यान, अनुप्रेक्षा आदि से गुजरता हुआ आत्मा तक ले जाता है। साध्वी सौभाग्ययशाजी ने कहा कि ध्यान के द्वारा योगों की चंचलता पर विराम लगाया जा सकता है।
पर्युषण महापर्व के आठ दिनों में साध्वी कुंदनरेखाजी ने कल्पसूत्र एवं आचारांग सूत्र के आधार पर भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा की विस्तार से चर्चा की। संवत्सरी महापर्व गणधरवाद एवं भगवान महावीर के साधनाकाल, उसमें आने वाले कष्टों तथा महासती चन्दनबाला आख्यान की रोचक प्रस्तुति की। साध्वी सौभाग्ययशाजी ने भगवान ऋषभ के जीवन दर्शन, उनके पूर्व भव आदि की व्याख्या की।