संयम से आत्मा को भावित करने का पर्व है पर्युषण
जैन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाने वाले पर्युषण पर्व की आराधना आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी प्रबलयशाजी ठाणा-3 के सान्निध्य में अणुव्रत भवन प्रांगण में संपन्न हुई। साध्वी प्रबलयशाजी, साध्वी सौरभप्रभाजी, साध्वी सुयशप्रभाजी ने पर्युषण पर्व की धर्माराधना में भगवान महावीर की जीवन गाथा का विवेचन कर आठ दिवसीय कार्यक्रम में खाद्य संयम दिवस पर खाने-पीने का संयम कर कर्म निर्जरा का मर्म समझाया। स्वाध्याय दिवस पर ज्ञान की ज्योति को समय नियोजन करके वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा व धर्मचर्चा कर निरंतर प्रज्वलित रखने की प्रेरणा दी। सामायिक दिवस पर सामायिक का अर्थ सहित व्याख्या देकर संवर-निर्जरा के लाभ के साथ-साथ मनुष्य को हर परिस्थिति में सम रहकर समता की साधना के विकास की प्रेरणा दी।
वाणी संयम दिवस पर वाणी के विवेक का मूल्य समझाया। अणुव्रत चेतना दिवस पर अणुव्रत आचार संहिता के नियमों का वाचन किया। गणाधिपति पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी द्वारा दिये गये अणुव्रत अवदान का जीवन जीने की शैली में उपयोगिता को और साथ ही श्रावक के बारह व्रतों को सरलता से समझाकर बारह व्रती श्रावक बनने के लिए सभी को प्रोत्साहित किया। जप दिवस पर व्याख्या दी कि प्रत्येक अक्षर में मंत्र बनने की क्षमता है और अक्षरों का सम्यक संयोजन ही मंत्र है, और साथ ही विशेष मंत्र जप होने से होने वाले आध्यात्मिक लाभ के बारे में समझाया।
ध्यान दिवस पर साध्वी श्री ने कहा कि विकेंद्रित विचारो को केंद्रित कर निर्विचार अंतर्यात्रा ही ध्यान है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा दिये गये अवदान प्रेक्षा-ध्यान का निरंतर प्रयोग करके मनुष्य अपने जीवन में शांति का विकास कर सकता है।
रात्रिकालीन प्रवचन में साध्वी सुयशप्रभाजी ने तीर्थंकरों की आध्यात्मिक ऎरोप्लेन व साध्वी प्रबलयशाजी ने 11 आचार्यों की भविष्यवाणी का विशद विवेचन किया। अंतिम दिवस संवत्सरी महापर्व पर सभी को चौविहार उपवास सहित अष्टप्रहरी पौषध करने के लिए जागरूक किया। संवत्सरी महापर्व पर साध्वी श्री ने माता त्रिशला के 14 सपनों का वर्णन किया और बताया कि आत्मा ही शत्रु व मित्र है, हम अनादिकाल से कालचक्र में घूम रहे हैं। आज का दिन तप का पर्व हैं, अपने भीतर का ईर्ष्या भाव खत्म कर प्रमोद भावना का जागरण करें, सेवा भावना का विकास करें। आगम का ज्ञान करना जरुरी है, अव्रत, कषायों व मिथ्या भाव व किसी के प्रति छलकपट किया हो तो उसका प्रतिक्रमण करें।
क्षमायाचना दिवस पर विगत वर्ष में मन वचन काया द्वारा, जाने-अनजाने में हुई भूलों की शुद्ध अंत:करण से प्राणी मात्र से क्षमायाचना का मूल्य समझा कर साध्वी प्रबलयशाजी ने आत्मशुद्धि के महत्व को बताते हुए कहा कि मैत्री दिवस स्नेह, प्रकाश व संयम आराधना का पर्व है। क्षमा, आनंद व शांति का सदन है जो सामने वाले को शीतलता प्रदान करता है। किसी भी प्रकार की कटुता मन मे हो तो उसे मिटाने का यह विशुद्ध आध्यात्मिक त्योहार है। साध्वी सौरभप्रभाजी, साध्वी सुयशप्रभाजी ने मैत्री गीत की प्रस्तुति दी। नन्हें बालकों ने भी उपवास व प्रवचन श्रवण का लाभ लिया। सात दिन अखंड नवकार महामंत्र का जप भी उल्लेखनीय रहा।
क्षमायाचना दिवस पर परमश्रद्धेय गुरुदेव एवं समस्त चारित्र आत्माओं से क्षमा याचना कर सभी श्रावक-श्राविका समाज ने एक दूसरे से भी खमत खामणा किया। क्षमापना गीत का संगान सुनील बैद व नोरतमल चौरड़िया ने किया। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष पवन सामसुखा, तेयुप अध्यक्ष पंकज सुराणा, महिला मंडल अध्यक्षा निर्मला छाजेड़, टी.पी.एफ. अध्यक्ष संजय चौरड़िया, ज्ञानशाला मुख्य प्रशिक्षिका रितु छाजेड़, खानदेश तेरापंथ सभा के उपाध्यक्ष राजकुमार सेठिया, कन्या मंडल प्रभारी मंजूषा डोसी ने अपने भाव व्यक्त किए। संचालन नोरतमल चौरड़िया ने किया।