निर्जरार्थी, दृढसंकल्पी व अल्पभाषी साध्वी
जाए सहाए निक्खंतो,परियायगणमुत्तमं।
तमेव अणुपालेज्जा, गुणे आयरियसम्मए।।
इस आगम उक्ति का साध्वी धैर्यप्रभाजी ने शतशः पालन किया। वे सौभाग्यशालिनी थी जिन्हें गुरुचरणों में अन्तिम श्वास लेने का अवसर प्राप्त हुआ। अपनी संयमयात्रा को समाधिपूर्वक पूर्ण कर अपना काम सिद्ध किया।
नन्दनवन का चातुर्मास आज स्मृतिपटल पर तरोताजा हो रहा है। श्रद्धेया साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने अल्प समय के लिए साध्वी धैर्यप्रभा जी को मेरे साथ रखा। उस समय मुझे निकटता से देखने का मौका मिला। वे धुन की बहुत पक्की थी। जो संकल्प कर लिया उसे पूरा करती। जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए, पर उन्होंने हर स्थिति समता पूर्वक हंसते-2 झेली।
उन्होंने उपवास के पारणे में आयंबिल तप स्वीकार किया। उसको याद करते ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हमने आंखों देखा- लूखे सूखे निरस आहार को भी बहुत ही प्रसन्नतापूर्वक करती। उनकी समता गजब की थी। वे विनम्र, सेवाभावी, स्वावलम्बी, जागरूक और श्रमशील साध्वी थी।
पूरे परिवार के साथ दीक्षा लेकर अपना नाम तेरापंथ के इतिहास में स्वर्णाक्षरों लिखा दिया। साध्वी सिद्धार्थ प्रभा जी तुम भाग्यशालिनी हो जो मां की सेवा का दुलर्भ अवसर प्राप्त हो गया। मां के ऋण से उऋण होने का यत्किंचित अवसर मिल गया। साध्वी धैर्यप्रभाजी की आत्मा शीघ्र मोक्षश्री का वरण करे।