अंतर ज्योति प्रगटाई
शासन श्री साध्वी रतन श्री जी ने हद हिम्मत दिखलाई।
अनशन की कर शुभ आराधन अंतर ज्योति प्रगटाई।।
चौरडिया कुल में जन्म लिया, गुरु तुलसी से पाई दीक्षा,
गुरु दृष्टि पा आगम मंथन कर अनुपम पाई तुमने शिक्षा,
भगिनी त्रय भतीजी ने भी संयमधन पाया पुण्याई।।
सहज सरलता कष्ट में समता अपनी धुन में रमण किया,
दृढ संकल्पी मन मजबूती से भगिनी द्वय का साथ किया,
लंबी-लंबी यात्राएं कर गण की गरिमा खूब बढाई।।
सहना सब कुछ गण में रहना गण ही मेरा प्राण है,
संघ निष्ठा मर्यादा निष्ठा गुरु निष्ठा ही त्राण है,
लक्ष्य बनाओ निज्जरट्ठिए का अनुपम शिक्षा फरमाई।।
अनुगामी बन एकदशक तक, साथ रहने का योग मिला,
पावन प्रेरणा पाकर तुमसे, मन उपवन में कमल खिला,
सौभागी गुरु महाश्रमण पा लक्षित मंजिल पाई।।
ऐसा आशीर्वर बरसाना मिले मोक्ष शीघ्र सुखदाई।।
करती हूं मैं मंगल कामना उत्तरोत्तर विकास करें,
महानिर्जरा करते-करते मोक्ष गति को शीघ्र वरें।
दीर्घ तुम्हारी संयम यात्रा गुरु शक्ति ने पार लगाई।।