धन-धन जीवन थांरो
जबरो दीपे संथारो।
पल-पल शरणों गुरुवां रो, धन-धन जीवन थांरो।।
म्हारे संथारो करणो आ सदा भावना भाता,
धार्यो बो कर दिखलायो जद तन में हुई असाता,
गुरुवर म्हारी नैया ने, अब भव स्यूं थे तारो।।
ज्यूं-ज्यूं बीते समय वेदना तन में घणी सतावे,
आत्म भिन्न शरीर भिन्न ओ चिंतन स्वस्थ बणावे,
ओम् भिक्षु जय भिक्षु जाप स्यूं होसी निस्तारो।।
जीणे री अभिलाषा छोडी, मरणे रो भय भाग्यो,
अंतर रा पट खुलज्या जद भीतर से पौरुष जाग्यो,
महाश्रमण री शक्ति स्यूं, फलसी कारज थारों।।
हुई असाध्य बीमारी फिर भी मन मजबूती थांरी,
आत्मसमर में जूझ रह्या आ रण रजपूती भारी,
अनशन री सौरभ फैली, कण कण पुलकित थांरो।।
तर्ज - धर्म की लौ जगाएँ हम