उ‌द्यान खिल्यो मन भायो

उ‌द्यान खिल्यो मन भायो

उ‌द्यान खिल्यो मन भायो।
डाल डाल और पात-पात पर रंग अनूठो छायो।।
गुरु तुलसी स्यूं दीक्षित शिक्षित विचरतां देश प्रदेशां,
गुरु इंगित आज्ञा रो सतिवर राख्यो ध्यान हमेशा।
स्वाध्याय जाप रा फूल खिलाकर जीवन ने महकायो।।
जागी चेतना पौरुष जाग्यो भवसागर स्यूं तरणो,
हर पल हर क्षण शुभ भावां रो रह्यो प्रवाहित झरणो।
उर्ध्वारोहण री यात्रा में अद्भुत शौर्य दिखायो।।
कर्म शत्रु स्यूं लोहो लेवण सामी छाती मंडग्या,
शूरवीरता रो ओ परिचय आत्म समर में डटग्या।
माटी रे काया पर पावन स्वर्णिम कलश चढ़ायो।।
अंत समय तक भैक्षव गण में बण्या रह्या उपयोगी,
सुव्रत, कार्तिक, चिंतन, सुमन रह्या सदा सहयोगी।
शासनश्री श्री रतन श्री जी गण में नाम कमायो।
महाश्रमण रे बरतारे में अनुपम दीप जलायो।।
तर्ज - जहां डाल डाल पर