जो तत्क्षण पवित्र बना दे वही तप है

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जो तत्क्षण पवित्र बना दे वही तप है

ईरोड। मुनि रश्मि कुमारजी के सान्निध्य में तप अभिनन्दन कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुनिश्री तप शब्द का विवेचन करते हुए कहा– त-तत्क्षण, प-यानी पवित्र होने की साधना। जो तत्क्षण पवित्र बना दे वही तप है। तप संयम का मूल है, धर्मरुपी पद्म सरोवर की पाल है, गुण रुपी महारथ की धुरा है। तप का मूल अर्थ है तपन, अर्थात गर्मी। शरीर के भीतर इतनी गर्मी पैदा करनी है कि उससे एक जैविक अग्नि पैदा हो। कमल बोथरा ने मासखमण तप करके अपने जीवन को धन्य किया है। मुनि प्रियांशु कुमार जी ने अपने विचार रखते हुए कहा तप में यदि कोरा शरीर तपता है तो वह अहंकार की अभिवृद्धि करने वाला बन जाता है, तप के द्वारा व्यक्ति अपने अन्तर्मन की कालिमा को धो कर साफ कर सकता है।