एक नया इतिहास रचाया
क्रांति का जो दीप जलाया, सत्य का सूरज उगाया।
अंधेरी ओरी में तुमने एक नया इतिहास रचाया।।
कांटों का था पंथ तुम्हारा, निकल पड़े थे तुम अकेले,
चरण बढ़े थे जिधर तुम्हारे, पथ में आये नये झमेले।
कष्टों की जब सुनी कहानी, जग भी चरणों में झुक आया।।
घी चौपड़ की बात कहां थी, रहने को आवास नहीं,
चर्चा करने आता जब भी, मुक्कों की मार सही।
तप्त रेत पर करी साधना, जन-जन का मानस चकराया।।
मां दीपा की हूं आभारी, भिक्षु जैसा रत्न दिया था,
सिरियारी की पुण्य भूमि पर, अंतिम जो विश्राम लिया था।
नन्दन वन सा शासन पाकर मिलती सबको शीतल छाया।।