अक्षय तृतीया के विविध आयोजन अक्षय तृतीया सुपात्र दान की अमर गाथा है
हैदराबाद, डी.वी. कॉलोनी
साध्वी शासनश्री जिनरेखा जी, साध्वी निर्वाणश्री जी, साध्वी काव्यलता जी आदि साध्वीवृंद के सान्निध्य में अक्षय तृतीया का कार्यक्रम उल्लासपूर्ण माहौल में परिसंपन्न हुआ। तेरापंथ भवन में समायोजित इस वर्षीतप पारणा महोत्सव के अवसर पर साध्वीश्री जी के सान्निध्य में पात्र-दान का लाभ लिया।
महेंद्र लुणावत, प्रवीण लुणावत, कपूर धारीवाल तथा प्रीति गांधी ने वर्षीतप की आराधना की। इसके अतिरिक्त मंजु भंसाली, रेणु देवी सेठिया, बृजलता लुणिया ने इस अवसर पर अपना वर्षीतप पूर्ण किया।
अक्षय तृतीया के अवसर पर साध्वी जिनरेखा जी ने कहा कि यौगलिक युग का अंत और कर्मनिष्ठ मनुष्य युग के प्रारंभ का समय था जब भगवान ॠषभ इस युग में जनमे। उन्होंने असि, मसि व कृषि कर्म का प्रवर्तन कर धर्म का भी प्रवर्तन किया।
साध्वी निर्वाणश्री जी ने कहा कि भगवान ॠषभ ने चौविहार (निर्जल) तप के क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया। प्रतिवर्ष हजारों भाई-बहन एकांतर उपवास के साथ वर्षीतप की आराधना करते हैं।
साध्वी काव्यलता जी ने कहा कि भगवान ॠषभ ने श्रम की प्रतिष्ठा की। उन्होंने श्रम से सफल होने का सूत्र दिया। साध्वी डॉ. योगक्षेमप्रभा जी ने अपने संयोजकीय वक्तव्य में कहा कि अंतिम कुलकर नाभिराजा व माता मरुदेवा के कुल के भूषण थे भगवान ॠषभ। भगवान ॠषभ चौदह महास्वप्नों के साथ संसार में आए। वे प्रथम राजा, प्रथम तीर्थंकर, प्रथम यति थे। उन्होंने संसार की समस्त कलाएँ सिखाकर, धर्म की कला सिखाई।
साध्वीवृंद ने समवेत स्वर में गीत का संगान किया। तेयुप से प्रकाश बोथरा, तेरापंथी सभा, सिकंदराबाद के अध्यक्ष सुरेश सुराणा व तेममं से प्रेम देवी पारख ने तपस्वी भाई-बहनों को शुभकामनाएँ दी। तपस्वी भाई-बहनों में मुनि वर्धमान जी के पिता ने प्रथम तो पुत्र मुनि का दूसरा वर्षीतप पूर्ण हुआ।
इस अवसर पर तपस्वियों को अभिनंदन पत्र, माला आदि से तेरापंथ सभा की ओर से सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन साध्वी डॉ. योगक्षेमप्रभा जी ने किया।