
161वें मर्यादा महोत्सव के उपलक्ष में युगप्रधान परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा रचित गीत
करें हम आध्यात्मिक उत्थान रे, शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
तरें हम भवसागर व्यवधान रे, मतिमान रे, पा जाएं मोक्ष स्थान।।
जिन शासन का सुखकर साया, भैक्षव शासन हमने पाया।
दस गुरुओं की शीतल छाया, वर्तमान गतिमान रे।।१।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
धर्मसंघ की पावन सेवा, करें भाव से पाएं मेवा।
वृद्धों रुग्णों सापेक्षों की परिचर्या शासन शान रे।।२।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
आत्म साधना साम्य हमारा, गण से उसमें मिले सहारा।
आत्मा भिन्न शरीर भिन्न है, आत्मा की हो पहचान रे।। ३।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
आज्ञा के प्रति सतत सजगता, प्रभु चरणों में श्रद्धानतता।
सहज समर्पण रहे प्रखरतम, बन पाएं सुविनयवान रे।।४।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
पांच महाव्रत पांच रत्न हैं, उनका रखना प्रवर यत्न है।
तेरह नियमों वाला प्रभुवर ! तेरापंथ महान रे।।५।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
एकाचार विचार एकता, एकाचार्य विधान नेकता।
शिष्य सम्पदा एक सुगुरु की पंचामृत पुण्य निधान रे।।६।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
गुर्जर प्रान्त कच्छ भुज नगरी मर्यादोत्सव गौरव गगरी।
धर्म अहिंसा-संयम-तपमय, मंगल नन्दन उद्यान रे।।७।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
वीर भिक्षु तुलसी बालूसुत 'महाश्रमण' प्रभुपद श्रद्धायुत।
प्रगति पन्थ पर बढ़ते जाएं प्रभुवर आस्था-आस्थान रे।।8।।
शुभ ध्यान रे, जैनागम वाङ्मय ज्ञान।
लय– धरा पर उतरा स्वर्ग