गीत

गीत

भिक्षु का आसन भिक्षु का शासन सारे जहां में निराला,
मर्यादाओं से रोशन है गणवन भरता है मन में उजाला।
गण से जुड़ी है जीवन की आशा,
आशा के दीप जलाते चले।
चाहे धूप खिले चाहे सांझ ढले गण का है सबल सहारा।
आबाद रहे निर्बाध रहे गण आठों प्रहर रखवारऽऽऽ।।
1.गुरु के इंगित पे चलते रहेंगे,
आए संकट भले ही सहेंगे।
शिष्यों की योग्यता ही दीक्षा की है कसौटी,
रहती यहाँ पे गुरु के हाथों में सबकी चोटी।
गण ये प्राणवान है सबमें शक्ति भरता है,
भव से हमारी नैया जो पार करता है।।
2. भैक्षव शासन की नींवें हैं गहरी,
गण के नायक सुरक्षा-प्रहरी।
पहुंची है आसमां में गणकीर्ति की ध्वजाएं,
परमार्थ-पथ पे चलके निज भाग्य को सजाएं।
प्रासाद संघ का अति सुरम्य लगता है,
प्रेरणा से जीवन में जोश जगता है।।
3. गुरुवर वृद्धों की सेवा कराते,
ग्लानों-रुग्णों को साता दिराते।
सेवा हमारे गण की पहचान है अनूठी,
मिलती यहां पे सबको सेवा की जन्मघूंटी।
गण वर्धमान हो दायित्व ये अपना है,
इस संघ के खातिर हमें खपना है।।
4. विभुवर सूरत से सौराष्ट्र आए,
कच्छ भुज में महोत्सव मनाएं।
भुज शहर पर टिकी है दुनियां की आज नजरें,
उल्लास है दिलों में सागर में जैसे लहरें।
गण के 'विधान' का सम्मान हम करते हैं,
संघ की इस धूलि को निज शीश पर धरते हैं।।
लय– तेरा हिमालय आकाश छूले