
गीत
लय– कैलाश के निवासी नमूं
ये संघ है सुमेरु, हम प्रदक्षिणा करें-2,
तीर्थों में तीर्थराज की, परिक्रमा करें-2...
1. तीर्थंकरों के स्पर्श से पावन सुमेरु है-2,
तीर्थंकरों की वाणी से ये संघ-मेरु है-2
श्रुत शील से संपन्न गुरु की वंदना करें, अभिवंदना करें,
तीर्थों में तीर्थराज की, परिक्रमा करें-2...
2. धरा का नाभिचक्र वो देवों का बसेरा-2,
आश्रय सुहाना साधना का पंथ ये तेरा-2,
रमते मुनि निज धर्म में, संदर्शना करें, अभिवंदना करें,
तीर्थों में तीर्थराज की, परिक्रमा करें-2...
3. सद्ज्ञान दर्शन तप चरण चारों ही उपवन में-2,
तेरह नियम के फूल खिलते सारी ऋतुओं में-2
ऐसा है तेरापंथ, ले शरण वो तरे, अभिवंदना करें,
तीर्थों में तीर्थराज की, परिक्रमा करें-2...
लय– रुढ़ियों को तोड़ दो
दोनों हाथ जोड़ लें, विवेकशक्ति तोल लें,
जिससे संघ का भला न हो, वो काम क्यों करें?
4. संघ की पुनीत रीति नीति की जो बात है,
पीढ़ियों से आ रही जो गुनगुनाती ख्यात है।
आचमन करलें उन्हीं संस्कारों की गंगधार का,
निष्ठा में रखना पिरोकर शान से गलहार सा, आऽऽऽ
जिंदगी के सार की फुहार काहे छोड़ दें,
जिससे आत्म का भला न हो, वो राह क्यों चलें?
5. कामना है गर यही, भिक्षु का गण अक्षुण्ण हो,
पंच मर्यादाओं से साधक सदा परिपूर्ण हो,
संघ में आए हैं इसमें ही रहेंगे मान से,
और प्रण रहेगा ये, इस वर्ष प्रेक्षाध्यान से, आऽऽऽ
एक ही हो कार्य अपनी चेतना टटोल लें,
जो गुरु को नापसन्द हो, वो काम क्यों करें?
लय– कैलाश के निवासी नमूं
ये संघ है सुमेरु, हम प्रदक्षिणा करें-2,
तीर्थों में तीर्थराज की, परिक्रमा करें-...
6. आह्वान है समय का, गुरुवाणी ध्यान दो,
कच्छ की भूमि रणी संतान दान दो,
भुज की भुजाओं से रणी संतान दान दो,
आह्वान है समय का, गुरुवाणी ध्यान दो,
गुजरात के श्रावक गुणी संतान दान दो,
कर वर्द्धमान संपदा सौभाग्य को भरें,
तीर्थों में तीर्थराज की, परिक्रमा करें-2...
ये संघ है सुमेरु, हम प्रदक्षिणा करें-2,
तीर्थों में तीर्थराज की, परिक्रमा करें.-2...