शाश्वत धर्म है सेवा

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शाश्वत धर्म है सेवा

सुजानगढ़। तेरापंथ सभा भवन में 'शासनश्री' साध्वी सुप्रभाजी, साध्वी लब्धियशाजी एवं साध्वी मंजूयशाजी के सान्निध्य में 161वां मर्यादा महोत्सव का शुभारंभ नमस्कार महामंत्र से हुआ। तत्पश्चात साध्वी वृंद द्वारा मर्यादा गीत का संगान किया गया। महिला मंडल की बहनों ने मंगलाचरण किया। साध्वी मानसप्रभाजी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति सुंदर गीत के साथ की। सभा सदस्य केसरीचंद मालू और सरोज देवी बैद ने अपने विचार रखे। साध्वीवृंद द्वारा धर्म संघ की मर्यादा के पालन की प्रेरणा के साथ सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी गई। साध्वी मंजूयशा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि सेवा एक शाश्वत धर्म है, ज्ञान का महान फल है। नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा और समर्पण ही वास्तविक सेवा है। आपने साध्वी अणचांजी आदि साध्वियों की उत्कृष्ट सेवा का उदाहरण देते हुए सेवा हेतु प्रेरित किया। साध्वी लब्धियशा जी ने पृष्ठभूमि पर अपने विचारों की प्रस्तुति देते हुए कहा कि मर्यादा महोत्सव उत्सव के रूप में सबसे पहले बालोतरा में मनाया गया। साध्वी मनीषाश्रीजी ने भी अपने विचारों की प्रस्तुति दी। 'शासनश्री' साध्वी सुप्रभाजी ने मर्यादा की महत्ता पर प्रकाश डाला। संयोजन मंत्री डॉ. पूजा फुलफगर ने किया।