सति मदनश्री जी है सुखकारी

रचनाएं

साध्वी वीरप्रभा

सति मदनश्री जी है सुखकारी

भैक्षव शासन में धन्य हुई, सति मदनश्री जी है सुखकारी।
महाश्रमण गुरु के चरणों में, निज जीवन नैया को तारी।।
सरदारशहर शुभ दिन आया, तुलसी गुरु कर संयम पाया।
चारित्र बहत्तर वर्षों का, हर पल तेरा मंगलकारी।।
हो वीर भूमि की वीर सुता, इन्दरचंद लक्ष्मी मात-पिता।
थी सहज-सरल प्रभु भक्ति मगन, परमानंद की खिलती क्यारी।।
हंसता-मुस्काता तव आनन, व्यवहार सदा ही मनभावन।
गण-गणपति के संस्कारों से, भरती सबकी मन फुलवारी।।
रोगों ने विकट परीक्षा की, तब तुमने आत्म समीक्षा की।
आत्मा है भिन्न शरीर भिन्न, इस मंत्र से जोड़ी इकतारी।।
कैसे जाना तन को छोड़ूं, इस मनुष्य लोक से मुख मोड़ूं।
पंचोले तप में अनशन कर, सुरगमन की कर ली तैयारी।।
शुभ योग पधारे जय मुनिवर, है चार तीर्थ संगम सुखकर।
मंजुयशा जी सेवा सुखकर, बीदासर केन्द्र समाधि वर।
गुरु कृपा से योग ये वरदाई, समता की जाएं बलिहारी।।
धर दी ज्यो की त्यों यह चादर, निर्मल उज्जवल संयम मनहर।
संयम में सहयोगी बनना, पाओ सिद्धि श्री जयकारी।।
लय - महावीर तुम्हारे चरणो में