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पुण्यात्मा थीं साध्वी संचितयशाजी
जन्म और मृत्यु अवश्यम्भावी हैं। जो भी इस संसार में आता है, उसे एक दिन इस नश्वर संसार को अलविदा कहना ही पड़ता है। आने और जाने के बीच जो समय होता है, उसमें कुछेक विरल आत्माएँ उस अल्प समय को सार्थक बनाकर अपने जीवन को सफल बना लेती हैं। ऐसी ही पुण्यात्मा थीं 'साध्वी संचितयशाजी', जो मेरी संसारपक्षीय भतीजी महाराज थीं। उन्होंने असह्य वेदना को सहते हुए संथारे का वरण किया। आज यह सुनकर गौरव की अनुभूति हो रही है कि उन्होंने न केवल चण्डालिया परिवार में, बल्कि भैक्षव शासन में भी अपनी ख्यात बढ़ाई है। उनकी विरल आत्मा उत्तरोत्तर प्रगति करती हुई अपनी लक्षित मंज़िल को प्राप्त करे, मुक्तिगामी बने।