
रचनाएं
आसन पर शोभित नवमासन
शासन माता के आसन पर, शोभित नवमासन,
महर कराई महाराजा ने हर्षित श्रमणीगण।
महावीर युग महाश्रमण के युग में हमने निहारा,
चन्दबाला सम नेतृत्व देखा सबने तुम्हारा,
कि पैनी गुरु दृष्टि, हमारी है सृष्टि।।
1. विमल विमलतम जीवन तेरा, नई प्रेरणा देता,
आचार शुद्धता रहे निरंतर, प्रतिबोध हमें है मिलता।
पावन उज्जवलतम आभालय सुधा सिन्धु बरसा है,
प्रगतिपथ पर प्रतिपल बढ़ने की बस अभिलाषा है।
पैनी गुरु दृष्टि, हमारी है सृष्टि।
2. श्रुत आराधन करके गुरुत्रय, युग में विश्रुत बनकर,
पान किया स्वाध्याय सुधा का, श्रुत का अवगाहन कर।
निज चेतन में रमण किया गहराई में जाकर,
अन्तर्प्रज्ञापुंज प्रभु का वरदहस्त है सिर पर।
पैनी गुरु दृष्टि हमारी है सृष्टि।
3. तपे-जपे और खूब खपे शासन की शान बढ़ाई,
जप प्रयोग और ध्यान प्रयोगों, से शक्ति है पाई।
सरिता से स्मितप्रज्ञा, स्मितप्रज्ञा से विश्रुतविभा बन,
देश-विदेशों में जाकर खूब किया उन्नयन।
पैनी गुरु दृष्टि हमारी है सृष्टि।।
4. विभा निखारी महाप्रज्ञ की प्रयोगशाल में तुमने,
गहराई में झांका देखा निज चेतन महासतिवर ने।
भरो प्राण नन्हे पंखों में, नील गगन है छूना,
‘समयं गोयम मा पमायए’ सूक्त हमें जीना।
पैनी गुरु दृष्टि हमारी है सृष्टि।।
लय - उड़ जा काले कावां