
रचनाएं
युग निर्माता युग प्रहरी
युग निर्माता युग प्रहरी, महाश्रमण तुम्हें प्रणाम।
धरती के महा अवतार, गण नंदन वन आराम।।
कुशल शास्ता की वाक् पटुता लगती है मनहारी,
पुण्यात्मा की शिव रूप है, सूरत देव तुल्य निहारी।
अभिषेक की पावन वेला, दशो दिशाएं करती ललाम।।
हे अमृत के महासागर, साहित्यिक रचना तुम्हारी,
गुण रत्नों के महा आकर, सम्यक संस्कृति है प्यारी।
है बहुश्रुत विश्रुत भगवन, गति-मति-धृति अभिराम।।
शुंभकर प्रियंकर हे विभो, शांति, शक्ति आनंददाता,
पौरुष की दीपशिखा गुरुवर, घट-घट के विज्ञाता।
हे कृपा महासिंधु तुम मंगलकारी, अमर है शिवालय राम।।
तन्मय होकर, चिन्मय बनकर, अर्चा करें तुम्हारी,
सज्झाय झाणं में रहे निरन्तर, हो अर्न्तयात्रा हमारी।
स्थिर चेता, आत्मविजेता, अनासक्त चेतना को सलाम।।
कल्याणकारी, भवभयहारी, अंतस्तल के है राम,
तेरापंथ की आन-बान-शान तुम,
अखिल विश्व की पहचान हो तुम।
हे सिद्धिप्रवर शक्तिदायक जिनशास्ता का,
सुमिरण करते आठूं याम।।