बाल्यावस्था है अर्जन की अवस्था : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 10 अगस्त, 2025

बाल्यावस्था है अर्जन की अवस्था : आचार्यश्री महाश्रमण

ज्योतिपुंज, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के पांचवें उद्देशक के आधार पर मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा - प्राणी का जीवन अशाश्वत होता है। जैन दर्शन में जीव दो प्रकार के बताए गए हैं - एक सिद्ध और दूसरा संसारी। जो आत्माएं कर्ममुक्त हो गई हैं और सिद्धावस्था, मोक्षावस्था को प्राप्त हो गई हैं, वे सिद्ध जीव हैं। उन्हें मुक्त जीव या परमात्मा भी कहा जा सकता है। वे जीव कभी पुनः जन्म-मरण नहीं करते, शरीर धारण नहीं करते। वे अशरीरी होते हैं। उनके भाषा और मन भी नहीं होते। अनंत-अनंत आत्माएं सिद्ध हैं, मोक्ष को प्राप्त हो चुकी हैं और अनंत-अनंत जीव आगे मोक्ष में जाने वाले हैं। सिद्ध जीवों के पास आयुष्य कर्म नहीं होता। कोई भी कर्म नहीं होता। इसलिए जो आयुष्य कर्म से जुड़ा हुआ प्राणी का जीवन होता है, वह जीवन सिद्धों का नहीं होता। संसारी प्राणी जो जन्म-मरण करते रहते हैं, उनका ही जीवन होता है। उनका जीवन कुश और नोक पर टिके हुए, अस्थिर एवं वायु से प्रकंपित होकर गिरे हुए जलकण की तरह होता है। इस प्रकार यह आयुष्य कर्म वाला जीवन शाश्वत नहीं होता। मृत्यु का होना तो निश्चित है, पर कब होना है यह कुछ संदर्भों में अनिश्चित है। यह जीवन का एक क्रम है कि जन्म होता है तो साथ में मृत्यु भी होती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यदि परिपूर्ण आयुष्य सौ वर्ष मानें तो इन सौ वर्षों में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था भी आ जाती है।
बाल्यावस्था एक अर्जन की अवस्था है। इसमें विद्या का अर्जन किया जा सकता है। आज अनेकों विद्यार्थी विद्या संस्थानों से शिक्षित होते हैं और फिर अपने ढंग से कार्य करते हैं, सेवा देते हैं। विद्यार्थी अनेक विषयों का ज्ञान अर्जित करके वेत्ता बन सकता है, ज्ञान-संपन्न बन सकता है। ज्ञान होना अच्छी बात है, पर ज्ञान के साथ चरित्र भी अच्छा होना चाहिए। विद्या और आचार दोनों होने से मुक्ति मिलती है। शिक्षा और संस्कार दोनों होते हैं तो विद्यार्थी का जीवन श्रेष्ठ बन सकता है। कुछ बच्चे संयमी, संस्कारी होते हैं, इसके विपरीत कुछ बच्चों में अति चंचलता और उद्दंडता देखने को मिलती है। इसका कारण है - पिछले जन्मों के संस्कार। पिछले जन्मों से जो कर्म का उदय या क्षयोपशम का भाव हमारे भीतर है, वही कारण है।
बच्चा कोरा कागज हो या पहले से कोई संस्कार लेकर आ रहा हो, हमारा कर्तव्य है कि वर्तमान में बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास करें। पहले से यदि कोई बालक लिखाकर लाया भी है तो जहां तक हो सके गलत बातों को मिटाकर नया लिखने का प्रयास करें। बच्चों के मन और भावों पर अच्छे संस्कार आएं, यह पुरुषार्थ करने से हो सकता है। पुरुषार्थ करने पर तत्काल निष्पत्ति न भी आए, पर हमें सत्पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। बालकों का जीवन अभी प्रारंभ हुआ है, यदि वे अच्छे संस्कार वाले बन जाएं तो उनका युवावस्था और वृद्धावस्था का जीवन भी अच्छे संस्कारों से युक्त रह सकता है। यह एक कल्याणकारी कार्य होगा। आज शिक्षा के प्रति जागरूकता है कि बच्चे शिक्षा के लिए विदेश भी जाते हैं। वहां भी यदि संस्कार अच्छे रहें तो यह बड़ी बात है। विदेशों में कई स्थानों पर केंद्र हैं और वहां समणियां रहती हैं। विदेशों में रहने वाले जैन परिवारों और उनके बालकों को समणियों के संपर्क में रहने से अच्छे संस्कार प्राप्त हो सकते हैं। साधु-साध्वियों के द्वारा भी धर्म की प्रेरणा देने का कार्य किया जाता है। विद्या संस्थानों और परिवारों द्वारा भी अच्छे संस्कार देने का प्रयास होता रहना चाहिए। मीडिया के माध्यम से भी बच्चों को अच्छे संस्कार मिल सकते हैं।
आज ज्ञानशाला दिवस है। तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में यह उपक्रम बरसों से चलता आ रहा है। ज्ञानशाला का स्वरूप आज काफी व्यवस्थित दिखाई दे रहा है। ज्ञानशाला में बच्चों को अच्छा धार्मिक ज्ञान मिल सकता है और साथ ही अच्छे संस्कार भी मिल सकते हैं। ज्ञानशाला का यह क्रम अच्छे ढंग से आगे बढ़ता रहे, यही कामना है। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि माता-पिता बच्चों को कंप्यूटर, मोबाइल आदि ऑपरेट करना सिखाते हैं। इसके साथ-साथ जीवन को भी ऑपरेट करना सिखाएं और उन्हें अच्छे संस्कारयुक्त बनाने का प्रयास करें। महासभा के ज्ञानशाला प्रकोष्ठ द्वारा ‘ज्ञानशाला: एक प्रारूप’ के नवीन संस्करण को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया गया। ज्ञानशाला के राष्ट्रीय प्रभारी सोहनराज चौपड़ा व विमल घीया ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अहमदाबाद व आसपास क्षेत्र के ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को पुनः मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए बच्चों को प्रतिदिन 21 बार नमस्कार महामंत्र का जप करना संकल्प भी स्वीकार कराया। कुलदीप नौलखा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम के उपरान्त आचार्यश्री ने स्व. जबरमल दूगड़ व डॉ. जतनमल बैद परिवार को आध्यात्मिक संबल प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।