
रचनाएं
आप धन्य हो
आप धन्य हो, कृत्पुण्य हो। आप पवित्र हो, पावन हो।
सराहनीय था आपका मनोबल और आत्मबल।
अनुकरणीय था आपका संयमबल और अध्यात्मबल।
प्रशंसनीय था आपका तपोबल और आराधनाबल।
अनुमोदनीय थी आपकी सहजता और सरलता।
आचरणीय थी आपकी ऋजुता और मृदुता।
नवकार महामंत्र आपके रोम-रोम में बसा था।
ॐ भिक्षु नाम आपके कण-कण में विराजमान था।
आपका हर पल परमार्थ से परिपूर्ण था।
आपका हर दिन दिनमणि जैसा दीप्तिमान था।
आपका हर वर्ष विशेष, विशिष्ट और प्रेरणास्पद था।
आपका अदम्य आत्मविश्वास वाकई में बेमिसाल था।
भिक्षु शासन में आपने नाम कमाया, सुयश ध्वज फहराया।
महाव्रत, समिति, गुप्तियों की साधना से आपने जीवन को चमकाया।
आपने मेवाड़ का गौरव शिखरों तक चढ़ा दिया।
आपने कालू की गरिमा में चार चाँद लगा दिए।
आपके देवलोक गमन से शासन की ख्यात में विख्यात,
एक देदीप्यमान साध्वीश्री की कमी हो गई।
आचार्यश्री महाश्रमण जी का आशीर्वाद, छत्र-छाँह,
कृपा और करुणा-वत्सलता आपको सदैव मिलती रही।
साध्वीश्री उज्जवलरेखाजी, साध्वी अमृतप्रभाजी
आदि ने सेवा-भावना का इतिहास बना दिया।
दिवंगत साध्वीश्री जी की आत्मा के कल्याण की मंगल कामना।