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बारह व्रत कार्यशाला का समायोजन
तेरापंथ भवन संगरूर में साध्वी प्रांजलप्रभा जी के सानिध्य में बारह व्रत कार्यशाला का आयोजन किया गया। स्थानीय पंजाबी भाई-बहनों ने छोटे-छोटे व्रतों को समझकर उन्हें स्वीकार करने का उत्साह प्रकट किया। अपने उद्बोधन में साध्वी प्रांजलप्रभा जी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति की सामर्थ्य और अर्हता अलग-अलग होती है। हर व्यक्ति की शक्ति और आस्था में भी भिन्नता होती है। इसी कारण भगवान महावीर ने अध्यात्म साधना को दो भागों में विभक्त किया – महाव्रत और अणुव्रत। जिनमें विशेष शक्ति होती है, वे महाव्रत स्वीकार कर अनगार धर्म की साधना करते हैं। जबकि जो साधु बनने की क्षमता नहीं रखते, वे अहिंसा, सत्य आदि अणुव्रतों के छोटे-छोटे नियमों को ग्रहण कर ‘व्रत दीक्षा’ स्वीकार करते हैं।
साध्वीश्री ने बताया कि व्रत दीक्षा स्वीकार करने से समुद्र जितना पाप भी कटोरे में समाहित हो जाता है। आत्म-नियंत्रण की एक सुंदर प्रक्रिया है व्रत दीक्षा, जिससे आत्मा का बड़ा हित होता है और संवर की साधना स्वतः सिद्ध हो जाती है। उन्होंने प्रत्येक व्रत को सरल भाषा में विस्तारपूर्वक समझाया। स्थानीय युवक परिषद ने ‘विजय गीत’ के साथ कार्यक्रम का मंगलाचरण किया।