संयम है मोक्ष यात्रा का सुमार्ग

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जसोल।

संयम है मोक्ष यात्रा का सुमार्ग

साध्वी रतिप्रभा जी के सान्निध्य में दीक्षार्थी बहनों का अभिनंदन कार्यक्रम पुराना ओसवाल भवन में रखा गया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि दीक्षा जीवन का परम उत्कर्ष है। दीक्षा के साथ आयु नहीं, योग्यता को मापा जाता है। हमारे जैन दर्शन में ही नहीं, हर धर्म में सन्यास जीवन का महत्व आंका गया है। सन्यास आत्मा का दर्शन है, आत्मा का स्पर्शन है तथा साध्य और साधन की दूरी को पाटने वाला महाप्रणिधान है। यह चित्तशुद्धि एवं व्यवहार शुद्धि का उपक्रम है, जीवन के संरक्षण का संयोजक है और आत्मगुणों के संवर्धन की प्रयोगशाला है।
साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि जीना हो तो ज्योति बनकर जीना, जीना हो तो मोती बनकर जीना, क्योंकि जगत में अंधकारमय जीवन जीना बहुत बड़ा अभिशाप है। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने कहा कि दीक्षा का लक्ष्य है आध्यात्मिक उत्थान, समतारस का पान, संस्कारों का संपोषण, कर्मों का शोषण एवं साधना–संस्कारों का संरक्षण। साध्वी पावनयशा जी ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि साधना-आराधना सफल तभी होगी जब हमारा उपशमभाव प्रबल होगा। दीक्षार्थी बहन साधना बांठिया ने कहा कि साध्य और साधन की शुद्धि ही संयम की विशिष्ट साधना है। संयम जीवन का दीपक है, जो हर समय टॉर्च की तरह साधक का मार्गदर्शन करता हुआ श्रेयस की ओर ले जाता है। दीक्षार्थी बहन राजुल खटेड ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि शिखर कितना भी दूर हो, संकल्प मजबूत होना चाहिए। मेरे मन में दीक्षा की भावना जगी तो परिवार में चिंता बढ़ने लगी। अनेक परीक्षाओं के बावजूद मेरा संकल्प अटल रहा और मुझे आज मनोरथ पूर्ण करने का सुअवसर मिला है।