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मोक्ष का सोपान है संयम
आचार्यश्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी रतिप्रभा जी के सान्निध्य में दीक्षार्थी भाई मनोज संकलेचा का स्वागत ओसवाल भवन में किया गया। साध्वी रतिप्रभा जी ने फरमाया कि सन्यास जीवन आत्मा की विजय है। संयम का जीवन मोक्ष का सोपान है, आत्मोन्नति का राजमार्ग है, सद्गुणों का संवाहक है, जीवन निर्माण की उत्तम प्रयोगशाला है। उभरते यौवन में संयम जीवन स्वीकार करना आंतरिक वैराग्य का रसपान है। वैराग्य से भीगा जीवन ही उत्तम लक्ष्य की ओर प्रस्थान कर सकता है। साध्वी कलाप्रभा जी ने कहा कि संयम जीवन ज्ञात से अज्ञात की ओर प्रस्थान है। मृत्यु से अमरत्व की ओर चरण-न्यास है।
अंधकार से प्रकाश की ओर गतिशीलता सुंदर संकल्प है। इस इक्कीसवीं सदी में सन्यास जीवन का संकल्प ही महानता का प्रतीक माना जाता है। सन्यास जीवन काँटों का पथ है, पर तुम्हें फूलों की शय्या का आनंद लेना है। निरन्तर अप्रसन्नता की ओर प्रस्थान हो। साध्वी पावनयशा जी ने सुमधुर गीत द्वारा भावाभिव्यक्ति दी। डूंगरचंद सालेचा, तेरापंथ सभा अध्यक्ष भूपतराज कोठारी ने दीक्षार्थी भाई मनोज सकलेचा के आगामी जीवन की मंगलकामना की। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने कुशलतापूर्वक मंच का संचालन किया। मनोज्ञयशा जी ने दीक्षार्थी मनोज भाई, जो अपनी जन्मभूमि टापरा निवासी हैं, को अपनी आध्यात्मिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि संयम जीवन पाना महान सौभाग्य का सुफल है, अनन्त पुण्याई का सिंचन है, परमार्थ पथ पर चलने का मनोरथ बड़ी शूरवीरता का काम है।
तेरापंथ महिला मंडल व कन्या मंडल ने मंगल आरती की। मंगल भावना का कार्यक्रम बड़ा रोचक रहा। दूसरे चरण में बुद्धि परीक्षा प्रतियोगिता रखी गई। शर्त थी कि युगल जोड़ी हो – चाहे मां-बेटी, चाहे देवरानी-जेठानी, चाहे दंपति। प्रतियोगिता बड़ी रुचिकर रही। दोनों कार्यक्रम प्रेरणादायक रहे। इस क्विज प्रतियोगिता में 55 भाई-बहनों ने भाग लिया, जो भगवान महावीर पर आधारित प्रश्नमंच था।