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सफल जीवन का आधार–अनुशासन
साध्वी पुण्ययशा जी के पावन सान्निध्य में ‘भिक्षु शासन : नंदनवन’ कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें “आचार्य श्री भिक्षु की अनुशासन शैली” विषय पर प्रतिपादन करते हुए साध्वी पुण्ययशा जी ने अपने उद्बोधन में कहा – “आचार्य भिक्षु युगद्रष्टा महापुरुष थे। वे अपने युग में क्रांतिकारी आचार्य के रूप में पहचाने गए। अनुशासन को संगठन का अनिवार्य पहलू बताते हुए उन्होंने कहा कि आत्मशुद्धि के लिए अनुशासन जितना आवश्यक है, उतना ही संगठन की दृढ़ता के लिए भी उसका महत्व है। परिवार, समाज एवं राष्ट्र – किसी भी परिवेश में, समूह चेतना के स्तर पर सफल जीवन वही जी सकता है जो अनुशासन में रहना जानता है। पारिवारिक विघटन, सामाजिक टूटन और राष्ट्रीयता के बिखराव का प्रमुख कारण अनुशासन का अभाव है। जहाँ आत्मानुशासन के संस्कार न हों, अनुशासन के प्रति आस्था न हो और अनुशासन के परिणाम पर विश्वास न हो, वहाँ सामूहिक जीवन भी समस्या बन जाता है। जीवन के हर पहलू के साथ अनुशासन का महत्व जुड़ा है।”
साध्वी बोधिप्रभा जी ने एक कविता द्वारा सभी को अनुशासन के साँचे में ढलकर जीवन को निखारने की प्रेरणा दी। मंगलाचरण महिला मंडल की बहनों द्वारा प्रस्तुत किया गया। आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में साध्वीश्री की प्रेरणा से श्रावक-श्राविकाओं द्वारा लगभग 251 सामायिक और 250 घंटे का मौन साधा गया। अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान तप की दो लड़ियाँ (2 अढ़ाई सौ पचक्खाण एवं 10 पचक्खाण की सात लड़ियाँ) करवाई गईं, जिसमें लगभग 580 तपस्वियों की सहभागिता रही। सभाध्यक्ष राकेश छाजेड़ ने सभी का स्वागत किया एवं अढ़ाई सौ पचक्खाण में भाग लेने वाले सभी श्रावकों की अनुमोदना की। सफल संचालन गुलाब बाँठिया ने किया।