मोह की मूढ़ता से बचने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 16 सितम्बर, 2025

मोह की मूढ़ता से बचने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

वीतराग साधक महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वीर भिक्षु समवसरण में ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि व्यक्ति अहंकार में चला जाता है। एक साधु जिसने आगम नहीं पढ़े हैं, साधना की परिपक्वता कम है, वह अहंकार में भी जा सकता है। किसी ने साधु की प्रशंसा कर दी, उसकी विशेष बड़ाई कर दी तो वह अहंकार में जा सकता है। अहंकार सुन्दरता का, ज्ञान का, बल का, वक्तव्य का आदि किसी भी विषय का हो सकता है। व्यक्ति को ज्ञान होने पर वह मौन रखे तो बड़ी बात हो सकती है।
बहुत पढ़ा-लिखा, अनेक विषयों का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति यदि मौन रहता है तो उसके ज्ञान की अच्छी उपलब्धि होती है। व्यक्ति को अपने ज्ञान का दिखावा नहीं करना चाहिए, प्रशंसा पाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार शक्ति होने पर भी क्षमा का भाव रखना बहुत अच्छी बात होती है। दान देने वाले में भी प्रशंसा की इच्छा नहीं होनी चाहिए। संस्कृत में कहा गया है कि ज्ञान होने पर भी मौन रखना, शक्ति होने पर भी क्षमा रखना और दान देकर भी दिखावा नहीं करना —ये तीनों बातें व्यक्ति के बड़प्पन की द्योतक होती हैं। शास्त्र में कहा गया है कि जो व्यक्ति इन सभी चीजों में अहंकार करता है, वह मोह से मूढ़ हो जाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में सत्ता आए, बल आए, विद्या आए, धन आए अथवा रूप आदि आए — किसी भी प्रकार की विशेषता के अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। जो व्यक्ति किसी भी प्रकार का अहंकार करता है, वह मानो मोह से मूढ़ हो जाता है।
मोह की मूढ़ता से व्यक्ति को बचने का प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति में प्रशंसा प्राप्त करने की भावना भी हो सकती है, परन्तु प्रशंसा से अहंकार में चले जाना मूढ़ता की बात हो जाती है। तपस्या का भी अहंकार नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को अपने जीवन में किसी भी प्रकार के अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा आयोजित तत्त्व प्रचेता/तेरापंथ प्रचेता कार्यशाला शुरू हुई। इस संदर्भ में आचार्य तुलसी शिक्षा परियोजना की निदेशक पुष्पा बैंगानी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
पूज्य प्रवर ने कार्यशाला के संदर्भ में आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा कि महिला मंडल द्वारा चलाया जा रहा यह कार्यक्रम बहुत ही उपयोगी और गरिमापूर्ण है। चारित्रात्माएं भी इस कार्यक्रम से जुड़कर अपने ज्ञान को वृद्धिगत करती हैं। इससे अनेक व्यक्तियों में तत्त्वज्ञान का अच्छा विकास हो रहा है। इससे जुड़े हुए सभी में तत्त्वज्ञान का अच्छा विकास होता रहे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।