
संस्थाएं
पर्युषण महापर्व के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
समणी कुसुमप्रज्ञा जी के सान्निध्य में पर्वाधिराज पर्युषण एवं भगवती संवत्सरी का आयोजन बड़े हर्षोल्लास के साथ एवं आध्यात्मिक आराधना द्वारा स्थानीय तेरापंथ भवन में किया गया। समणी कुसुमप्रज्ञा जी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि संवत्सरी महापर्व आत्मलोचन, आत्म विश्लेषण एवं आत्म निरीक्षण का पर्व है। यह आत्मा को निर्मल बनाने का पर्व है। हमें साल भर की गलतियां एवं भूलों का लेखा-जोखा करते हुए उसकी क्षमा मांगनी चाहिए एवं भविष्य में गलती ना करें ऐसा संकल्प करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने कहा है कि आत्मा ही स्वयं की मित्र है और आत्मा ही स्वयं की शत्रु है, आत्मा ही सुख है और आत्मा ही दुःख है। भगवान महावीर ने कहा है कि हमें छोटे से छोटे जीव को भी नही सताना चाहिए क्योंकि उनमें भी हमारे समान आत्मा का वास है। उन्होंने भगवान महावीर के जीवन चरित्र के बारे में विस्तार पूर्वक विवेचन किया। समणी कुसुम प्रज्ञा जी ने महासाध्वी चंदन बाला जी एवं जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों तथा विशेष आचार्यों के बारे में जानकारी दी। समणी जिज्ञासा प्रज्ञा जी ने भगवान ऋषभदेव की स्तुति भक्तामर स्तोत्र के माध्यम से की तथा अपनी भावना व्यक्त करते हुए कार्यक्रम का मंगलाचरण किया। इस अवसर पर शानू जैन तथा कंचन जैन ने गीत का संगान किया। सैंकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने अष्ट प्रहरी पौषध, 6 प्रहरी पौषध, चार प्रहरी पौषध, उपवास, एकासन एवं सामायिक की आराधना कर संवत्सरी महापर्व को मनाया एवं धर्म आराधना की ।