
रचनाएं
तेरापंथ के आद्य प्रणेता
तुम ही नैया, तुम ही खेवैया, तुम ही तारणहार।
तेरापंथ के आद्य प्रणेता वंदन बारंबार।
बनकर माझी पार लगाते, नैया फंसे ना बीच मझधार।
जो भी मन से भिक्षु को ध्याता,
हो जाता भवसागर से पार।
आत्मसमर के अमर वीर की, महिमा अपरंपार।
त्याग तपोबल, प्रबल मनोबल से पाया जीवन का सच्चा सार।
तेरापंथ की ज्योति से ज्योतिर्मय सारा संसार।
भिक्षु का अवदान अलौकिक पाकर जीवन है गुलजार।
सत्यशोध कर, रूढ़िवाद पर किया प्रबल प्रहार।
शासन में अनुशासन का, किया अलबेला समाहार।
भिक्षु नाम स्मरण से खुल जाते हैं अंतर द्वार।
रोग शोक भय दूर होते, होते सपने साकार।
पंख टूटे परिंदे भी, उड़ान भरते पंख पसार।
शूलों को चुन, फूल खिलाते, देते संयममय जीवन का उपहार।
भिक्षु स्वामी अंतर्यामी, मेरे मन के सुन लो यह उद्गार,
सिरियारी के संत अनोखे, कर दो बेड़ा पार।