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निस्पृह कर्मयोगी आचार्य कालूगणी
हैदराबाद। डॉ. साध्वी गवेषणाश्री जी ने कहा- जैन तेरापंथ धर्मसंध के अष्टमाचार्य कालूगणी एक सफल अनुशास्ता, निःस्पृह कर्मयोगी, कुशल मनोवैज्ञानिक, न्याय के पक्षधर और बहुमुखी विकास के प्रेरणास्त्रोत आचार्य थे। जैन धर्म की प्रभावना में उनका अवदान विविध रूपों में रहा है। शिशु अवस्था में ही उनके जीवन में धार्मिक संस्कारों की नींव गहरी हो गई। साध्वी मयंकप्रभा जी ने कहा- दीक्षा जीवन से आचार्य पद पर आरूढ़ होने तक का बाईस वर्ष का काल उनके लिए व्यक्तित्व निर्माण का सर्वोत्तम काल था।
इस प्रलंब अवधि में शिक्षा साधना के अनेक अनुभवों का संबल उन्हें प्राप्त हुआ। उनके अंतरंग व्यक्तित्व में मघवागणी का वात्सल्य, माणकगणी की उपासना और डालगणी के कठोर अनुशासन के निकष पर उत्तीर्ण निर्दोष कनक था। साध्वी मेरुप्रभा जी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा- आचार्य कालूगणी के शासनकाल में अभूतपूर्व प्रगति हुई। साधना, शिक्षा, कला साहित्य आदि में उन्होंने नये कीर्तिमान स्थापित किए। साध्वी दक्षप्रभा जी ने सुमधुर गीतिका प्रस्तुत करते हुए अपने विचारों की प्रस्तुत दी।