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सिद्धि तप, 28, 30, 40 व 89 की तपस्या का हुआ अभिनन्दन
साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन में मासखमण तप एवं सिद्धि तप अनुमोदना का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ। आशा गोलेच्छा ने 89 दिन, दरिया देवी माली ने 40 दिन, पारस गोलेच्छा ने 30 दिन, संतोष भंडारी ने 28 दिन एवं नम्रता श्रीश्रीमाल ने सिद्धि तप का प्रत्याख्यान विशाल उपस्थिति में किया।
साध्वी अणिमाश्रीजी ने अपने उद्बोधन में कहा तपस्या वह पावक है, जिसमें तपकर आत्मा कुंदन सम उज्ज्वल पवित्र बन जाती है। तपस्या वह हवा का झौंका है, जो आत्मा पर लगे कर्म-बादलों को छिन्न-भिन्न कर सकता है। तपस्या जीवन का श्रृंगार है। चातुर्मास काल में जैन-समाज के हजारों भाई बहन तपस्या कर अपनी आत्मा का श्रृंगार करते हैं। बालोतरा में भी तप रुपी आभूषण से भाई-बहनों नेअपनी आत्मा को सजाया है और भी सजाना है। मासखमण सबसे बड़ा गहना है। यहां उस गहने को पहनने वाले भाई बहनों के तप की अनुमोदना करते हैं। साध्वीश्री ने कहा- तपोनिष्ठ श्राविका आशाबाई ने एक साथ तीन मासखमण जितनी तपस्या की है। इनके जीवन की यह सबसे बड़ी तपस्या है एवं मेरे 52 वर्षों की संयम पर्याय में भी यह सबसे बड़ी तपस्या है। जैनेतर समाज की बहन दरिया बाई माली ने चालीस दिन का प्रत्याख्यान कर सबके लिए प्रेरणा प्रदीप बनी है। संतोष भंडारी ने तेले-तेले के एकान्तर करने के बाद यानि तेरह तेलों के बाद यह मासखमण किया है। सचमुच दृढ़ संकल्पी श्राविका है। पारस गोलेछा ने स्वास्थ्य की प्रतिकूलता के बावजूद तीस की तपस्या कर हिम्मत दिखलाई है। नम्रता श्रीश्रीमाल ने छोटी वय में सिद्धितप कर तप के गौरव को अभिवर्धित किया है। साध्वी कर्णिका श्रीजी, डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी, साध्वी समत्वयशाजी एवं साधी मैत्री प्रभाजी ने प्रेरक गीत के माध्यम से तपस्वियों के तप की अनुमोदना करते हुए परिषद को तप से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।
सभाध्यक्ष महेन्द्र वेदमुथा, सहमंत्री राजेश बाफना, कोषाध्यक्ष देवलाल ओस्तवाल ने साध्वीप्रमुखाश्रीजी के संदेश का वाचन किया। तपस्वियों के पारिवारिक जन ने अपने-अपने भावों को गीत व वक्तव्य के माध्यम से प्रस्तुति दी। सभा द्वारा तपस्वियों का तप अभिनंदन पत्र एवं साहित्य से सम्मान किया गया। साध्वी कर्णिकाश्रीजी व साध्वी समत्वयशा जी ने संचालन किया।