मुक्ति का पथ और आत्मोत्कर्ष  का रथ है दीक्षा

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पूर्वांचल कोलकाता।

मुक्ति का पथ और आत्मोत्कर्ष का रथ है दीक्षा

मुनि जिनेश कुमारजी के सान्निध्य में दीक्षार्थी हनुमान दुगड़ का दीक्षार्थी मंगलभावना समारोह का आयोजन भिक्षु विहार में जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा (कोलकाता - पूर्वांचल) ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया। इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री ने कहा- भारतीय संस्कृति त्याग व संयम प्रधान संस्कृति रही है। त्याग का मूर्तरूप है- दीक्षा। दीक्षा अनंत की यात्रा है। दीक्षा मुक्ति का पथ, आत्मोत्कर्ष का रथ है। दीक्षा वासना से उपासना, मृत्यु से अमरत्व असत से सत और राग से विराग की यात्रा है। दीक्षा का सम्बंध अवस्था के साथ न होकर वैराग्य के साथ होता है।
उपासक हनुमानमल जी दुगड़ 70 वर्ष की उम्र में आचार्य श्री महाश्रमण जी के कर कमलों में मुनि दीक्षा स्वीकार करने जा रहे हैं उनके भावी आध्यात्मिक जीवन के प्रति मंगल भावना व्यक्त करता हूं। कार्यक्रम का शुभारंभ मुनि कुणाल कुमारजी के मंगलाचरण के हुआ। स्वागत वक्तव्य पूर्वाचल सभा के अध्यक्ष संजय जी सिंघी ने दिया। दीक्षार्थी हनुमानमल दुगड़ ने अपने वैराग्य के घटनाक्रम को बताते हुए उपासक श्रेणी व सभी उपस्थितों से खमतखामणा किया। इस अवसर पर दीक्षार्थी परिचय उपासक उपासक सुरेन्द्र सेठिया ने दिया। उपासक महावीर प्रताप दुगड, कोलकाता सभा के अध्यक्ष अजय भंसाली ने मंगलभावना में अपने विचार व्यक्त किये। सुराणा परिवार के सदस्यों के समूह गीत प्रस्तुत किया। आभार ज्ञापन सभा मंत्री पंकज डोसी ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि परमानंद जी ने किया। सभा द्वारा दीक्षार्थी का सम्मान भी किया गया। इस अवसर पर अच्छी संख्या में उपासक श्रेणी के सदस्य व श्रद्धालुजन उपस्थित थे।