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223वाँ आचार्य श्री भिक्षु चरमोत्सव के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
साध्वी गुप्तिप्रभाजी के सान्निध्य में आचार्य भिक्षु चरमोत्सव का आयोजन किया गया। साध्वीश्री ने कहा - आचार्य भिक्षु अपने शिष्य समुदाय को अंतिम शिक्षा देते हुए कहते हैं कि जैसा बहुमान, सम्मान मुझे दिया, वैसा ही भारमल को भी देना। सांप या सिंह का बच्चा छोटा या बड़ा नहीं होता। तेरापंथ में आज्ञा का बहुत महत्व है। मैंने स्वयं जिनाज्ञा से स्वयं को भावित किया, आप सब भी आज्ञा में चलना। साध्वीश्री ने आज्ञा के महत्व पर विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं द्वारा प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज्ञा अनुपालन से ही धर्मसंघ शिखरों को छू रहा है। आचार्य भिक्षु का कथन है — आज्ञा, अनुशासन में चलने वाला ही पनपता है। टालोकर को महत्व नहीं देना चाहिए। दीक्षा योग्यता के आधार पर हो, मात्र संख्यावृद्धि का लक्ष्य न हो। शुद्ध आचार का पालन करना और आचारशुद्धि का मूलभूत महत्व है। इस प्रकार समुद्र का मंथन कर अमृत घूंट के रूप में ये शिक्षाएं दीं। साध्वी कुसुमलता जी ने सुमधुर गीतिका द्वारा अभिव्यक्ति दी। साध्वी मौलिकयशा जी एवं साध्वी भावितयशा जी ने आचार्य भिक्षु पर रोचक संवाद प्रस्तुत किया। महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। दीक्षिता एवं खुशी सेठिया ने कविता के माध्यम से तथा महिला मंडल अध्यक्षा संतोषदेवी संचेती ने भाषण द्वारा अभिव्यक्ति दी। कन्या मंडल एवं महिला मंडल ने ‘सत्य का आलोक — दृष्टांतों के झरोखे’ संवाद की प्रस्तुति दी। मंगलाचरण कुलदीप मनोत ने सुमधुर स्वर लहरियों से किया। कार्यक्रम का मंच संचालन खुशबू सेठिया ने किया।