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धार्मिकता, नैतिकता, मानवता का आधार है- करुणा भाव
भिक्षु साधना केंद्र में चार मास का ऐतिहासिक पावस प्रवास संपन्नकर मुनि तत्त्वरुचि जी 'तरुण' एवं मुनि संभवकुमार जी ने गुरुवार को भव्य रैली के साथ विहार किया। इस मौके पर बड़ी संख्या में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने संतों को भावपूर्ण विदाई दी। प्रस्थान से पूर्व संतों ने महामुनि केशी स्वामी और राजा परदेशी का व्याख्यान सुनाया। मुनि श्री तत्त्वरुचि जी 'तरुण' ने प्रवचन में कहा - नास्तिक-आस्तिक का संबंध धर्म में आस्था रखने - नहीं रखने से है। अच्छा इंसान बनना व्यक्ति का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। चाहे वह आस्तिक हो अथवा नास्तिक। मुनिश्री ने कहा - करुणा मानवता का सर्वोपरि गुण है। करुणा की चेतना के जागरण से ही स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है। करुणा का भाव धार्मिकता नैतिकता और मानवता का आधार है। मुनि संभवकुमार जी ने कहा - संत जन करुणा के अवतार होते हैं। इसलिए कहा जाता हैं - संतों की संगति से पापी भी पावन और क्रूर भी करुणावान बन जाता है। घृणा पापी से नहीं पाप से होनी चाहिए। संतद्वय प्रवचन के तत्काल बाद भिक्षु साधना केंद्र से विशाल जुलूस के साथ विहार कर श्याम नगर मेट्रो स्टेशन के निकट श्रीमान शांतिलाल जी भंसाली के निवास पर पहुंचे। जहां महावीर भगवान की स्तुति में सामूहिक गीत का संगान हुआ। संतों के मंगलपाठ और मंगल आशीर्वाद के साथ रैली का समापन हुआ।