अध्यात्म जीवन में रहे महावीर-सा पराक्रम : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गडादर। 14 नवम्बर, 2025

अध्यात्म जीवन में रहे महावीर-सा पराक्रम : आचार्यश्री महाश्रमण

भगवान महावीर के प्रतिनिधि, वीतराग साधक महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी राजेन्द्रनगर से मंगल प्रस्थान कर लगभग दस किलोमीटर का विहार परिसम्पन्न कर गडादर में स्थित श्री गडादर प्राथमिकशाला में पधारे। मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी के पावन दिन अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि आज परम वंदनीय श्रमण भगवान महावीर का दीक्षा दिवस है। चैत्र शुक्ला त्रयोदशी भगवान महावीर का जन्म दिवस है, जिसे हम महावीर जयंती के नाम से जानते हैं। कार्तिक कृष्णा अमावस्या भगवान महावीर की परिनिर्वाण तिथि होती है। वैशाख शुक्ला दशमी भगवान महावीर की कैवल्य प्राप्ति की तिथि है। जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान-प्राप्ति और निर्वाण — ये चार तिथियाँ तथा साथ में च्यवन-तिथि — ये पाँच अत्यंत महत्त्वपूर्ण तिथियाँ मानी जाती हैं।
आज का दिन संयम में पराक्रम का दिन है। जन्म लेना एक सामान्य घटना है, किंतु संयम में पराक्रम एक बहुत बड़ी बात है। आज के दिन भगवान महावीर ने गार्हस्थ्य जीवन त्यागकर साधुत्व को स्वीकार किया था। 'सारे पाप कर्म मेरे लिए अकरणीय हैं' — यह अभिग्रह आज ही के दिन लिया था। उस समय भगवान महावीर की आयु लगभग 30 वर्ष थी। यह दीक्षा-क्रम आज भी चल रहा है। हमारे धर्मसंघ में प्रायः हर वर्ष दीक्षाएँ होती रहती हैं। इस भौतिकता के युग में संयम का क्रम चलना एक शुभ संकेत है। जीवन में दो मार्ग हैं — एक भौतिकता का मार्ग और दूसरा अध्यात्म का मार्ग। कोरी भौतिकता व्यक्ति को अशांति की ओर ले जा सकती है, अतः भौतिकता पर अध्यात्म का अंकुश आवश्यक है। इससे जीवन संतुलित और श्रेष्ठ बनता है। ऐकान्तिक राग, भोग, व्यवहार और पदार्थवाद का प्रवाह न बढ़े; इन सब पर क्रमशः विराग, त्याग और अध्यात्मवाद का नियंत्रण रहना चाहिए। महावीर ने इसी दिन महान पथ को स्वीकार किया था और यह सौभाग्य की बात है कि आज भी लोग साधुत्व के इस पथ को अपनाने का साहस रखते हैं।
प्रभु महावीर का लगभग साढ़े बारह वर्ष विशिष्ट साधना में बीता। उन्होंने अत्यंत उच्च कोटि की साधना की और साधना-साधना में उनके मोह का आवरण पूर्णतः नष्ट हुआ। तेरहवें गुणस्थान में प्रवेश कर उन्होंने केवलज्ञान तथा केवलदर्शन की प्राप्ति की। दुनिया में महापुरुषों के होने से अनेक लोगों को सद्मार्ग मिलता रहता है और जीवन की दिशा उत्तम बनती है। इसलिए आवश्यक है कि समय-समय पर महापुरुष अवतरित हों, जो लोगों में सद्भाव और सत्प्रेरणा का संचार करें। कई लोगों में अध्यात्म का उत्साह जागृत हो जाता है और वे भी पराक्रमी बन जाते हैं — इससे समाज को अत्यंत लाभ मिलता है। तीर्थंकर अत्यंत महान महापुरुष होते हैं, और यह संसार का सौभाग्य है कि इसमें तीर्थंकरों का पूर्ण अभाव कभी नहीं होता। आज से बारह वर्ष पूर्व, मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी के दिन, राजस्थान के थली क्षेत्र के बीदासर में सन् 2013 में तियालीस लोगों ने साधुत्व स्वीकार किया था। वह एक विलक्षण दीक्षा समारोह था, जिसमें तत्काल मंच पर ही चार व्यक्तियों ने भी दीक्षा का निर्णय लिया था। यह दीक्षा संयम-साधना का श्रेष्ठ उदाहरण है।
महामना आचार्य भिक्षु, जो भगवान महावीर की परंपरा में आचार्य थे, को भगवान महावीर की वाणी के प्रति अत्यंत श्रद्धा और निष्ठा थी। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु के जीवन में अनेक समानताएँ पाई जाती हैं — इतनी समानताएँ संभवतः जैन शासन के किसी अन्य आचार्य और भगवान महावीर के जीवन में नहीं मिलतीं। हमें भी संयम की दिशा में अग्रसर होने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत मुनि अर्हम् कुमारजी ने अंग्रेजी भाषा में अपनी प्रस्तुति दी। प्राथमिक शाला की ओर से रामाभाई और जसुभाई पटेल ने अपनी अभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।