कषाय से प्रेरित होकर न करें कोई भी कार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गाम्भोई, साबरकांठा। 12 नवम्बर, 2025

कषाय से प्रेरित होकर न करें कोई भी कार्य : आचार्यश्री महाश्रमण

आध्यात्मिक जगत के महासूर्य महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आध्यात्मिकता और लौकिकता दो पृथक विषय हैं। आध्यात्मिकता में आत्मा की प्रधानता होती है, जबकि लौकिकता में शरीर, पुद्गल और अन्य बाह्य पदार्थों का महत्व होता है। शास्त्र में कहा गया है कि एक आत्मा की ओर मुख करके रहने वाला 'आत्ममुखी' कहलाता है। कोई आत्ममुखी होता है, कोई पदार्थमुखी, कोई गुरुमुखी और कोई संघमुखी। साधना के क्षेत्र में आत्ममुखी होना परम आवश्यक बताया गया है।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति कोई भी कार्य करे तो यह विचार अवश्य करे कि यह कार्य आत्महित में है या मोह और कषाय से प्रेरित होकर किया जा रहा है। जहां मोह है, वहां संसार है; और जहां निर्मोह है, वहां मोक्ष की दिशा में गति संभव है। मोह में रहकर मोक्ष दूर रहता है, और मोक्ष की ओर अग्रसर होने पर मोह दूर होता जाता है। व्यक्ति को यह चिंतन बनाए रखना चाहिए— 'मैं आत्मा हूं, मैं शरीर नहीं हूं। निश्चय से मैं अकेला हूं।'
इस संसार में प्रत्येक जीव अपने कर्मों के अनुसार फल भोगता है। अतः 'मैं अकेला हूं, धन–पदार्थ आदि मेरे साथ नहीं चलने वाले' — यह चिंतन सदा बना रहना चाहिए। जीवन में प्रतिपल सजग रहकर आत्मकल्याण का प्रयास करने वाला दृष्टिकोण ही आदर्श और वांछनीय है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात् समणी अपूर्वप्रज्ञाजी ने ‘अहंकार’ विषय पर अंग्रेज़ी भाषा में अपनी विचाराभिव्यक्ति प्रस्तुत की। स्कूल के प्रिंसिपल कमलेश भाई पटेल ने आचार्य प्रवर के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।