धर्म की शरण से मिलता है जन्म-मरण की परंपरा से छुटकारा : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हिम्मतनगर। 11 नवम्बर, 2025

धर्म की शरण से मिलता है जन्म-मरण की परंपरा से छुटकारा : आचार्यश्री महाश्रमण

जन-जन को जीवन का दिशा बोध प्रदान कराने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि यह संसार, जिसमें व्यक्ति जन्म–मरण की परंपरा में निरंतर गतिमान रहता है, अध्रुव और अशाश्वत है। इसमें व्यक्ति जीवन को प्राप्त करता है और एक दिन अवसान को भी प्राप्त हो जाता है। कोई भी प्राणी व्यक्तिगत रूप से शाश्वत नहीं है—जन्म लेना, जीवन जीना और एक दिन पंचतत्व को प्राप्त होना—यही सृष्टि की व्यवस्था चल रही है।
उन्होंने कहा कि इस संसार में जन्म लेने वाला मनुष्य इस भावना को धारण करे कि वह दुर्गति में न जाए। नरक गति और तिर्यंच गति में न जाना पड़े। अभव्य जीवों के तो अनन्तानन्त भव हैं, उनके मोक्ष प्राप्त करने की बात ही नहीं है, परंतु भव्य जीवों को भी अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल में न जाने कितने जन्म–मरण करने पड़ सकते हैं। अतः व्यक्ति को ऐसा कार्य करना चाहिए कि वह दुर्गति में न जाए। अपनी योग्यता और क्षमता के अनुरूप अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। संसार में रहते हुए जन्म–मरण की परंपरा से छुटकारा पाने के लिए धर्म की शरण में रहें, तो मुक्ति भी प्राप्त हो सकती है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज हिम्मतनगर आए हैं। नाम में 'हिम्मत' है, तो यहां के लोगों में भी अच्छे कार्यों के लिए हिम्मत हो, और यहां की जनता में उत्तम धार्मिक भावना बनी रहे। विद्यालय के बच्चों में श्रेष्ठ धार्मिक संस्कार आएँ—इस दिशा में सतत प्रयास होते रहें। आचार्य प्रवर के मंगल प्रवचन के उपरांत साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कहा कि आचार्य प्रवर के प्रवचनों में अनेक बिंदु ऐसे होते हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि सचमुच हम अपने लक्ष्य के निकट पहुँच रहे हैं। मोक्ष जैसी शाश्वत स्थिति को प्राप्त करने के लिए हमें आत्मा का ध्यान, दर्शन और ज्ञान करने का सतत प्रयत्न करना होगा। जो व्यक्ति आत्मा को देखता और जानता है, वही अमृत को प्राप्त करता है। तत्पश्चात् समणी विज्ञप्रज्ञाजी ने क्रोध के संदर्भ में अपनी विचाराभिव्यक्ति अंग्रेज़ी भाषा में प्रस्तुत की।
स्थानीय सभा के अध्यक्ष रतन बोरड़ ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत-गीत का संगान किया। स्कूल के ट्रस्टी अतुलभाई दीक्षित और बीडीओ हर्षदभाई बोहरा ने भी आचार्य प्रवर के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।