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चित्त समाधि शिविर का आयोजन
समाधि का सबसे बड़ा कारण है- इन्द्रियों का संयम मुनि जिनेश कुमार युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में चित्त समाधि शिविर का आयोजन तेरापंथ महिला मंडल, पूर्वांचल द्वारा भिभु विहार में आयोजित किया गया।
इस अवसर पर उपस्थित शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा चित्त समाधि का संबंध आध्यात्मिक प्रसन्नता और मानसिक शांति से है। समाधान का नाम समाधि है। जो आदि व्याधि, उपाधि से मुक्त होकर समाधि का जीवन जीता है वह बादशाह से कम नहीं है। बदलते परिवेश में व्यक्ति तनाव व असमाधि की और जा रहा है। जिससे व्यक्ति शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक बीमारियों से ग्रसित हो रहा है। घर का वातावरण दूषित हो रहा है। परिवार टूटते जा रहे है। व्यवसाय पर बुरा असर पड़ रहा है। कलह का वातावरण निर्मित हो रहा है। इन्द्रियों का असंयम, आग्रह, असहिष्णुता, संदेह,अविश्वास, ईर्ष्या, द्वेष, असमाधि के कारण है। चित्त प्रसन्नता नहीं हो तो भाव अशुद्ध होंगे।
भाव अशुद्ध है तो व्यक्ति सद्गति को प्राप्त नहीं होगा। मुनिश्री ने आगे कहा तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य चार तीर्थ को समाधि में रहने की प्रेरणा देते रहते हैं और पूरा ध्यान रखते है। जिससे चार तीर्थ समाधि में रहे। चित्त प्रसन्न है तो व्यक्ति दुखों से छुटकारा पा लेगा। चित्त समाधि के लिए इंद्रिय संयम, अनाग्रह, अनावेश वाणी संयम, आहार संयम व एक दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। मुनिश्री ने द्वितीय चरण में विचार रखते हुए प्रेक्षाध्यान के प्रयोग कराए। इस अवसर पर मुनि परमानंद ने कहा- जो व्यक्ति चित्त समाधि में रहता है उसे कोई दुःखी नहीं बना सकता। जहाँ अपेक्षा, उपेक्षा में मन उलझता है वहाँ वह दुखी होता है। और जहाँ मन अपनी समीक्षा करता है, शांति रखता है यहाँ वह चित्त समाधि में रहता है। मुनि कुणाल कुमार जी ने 'चित्त समाधि मय हो' गीत का संगान किया। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ महिला मंडल द्वारा मंगलाचरण से हुआ । स्वागत भाषण में अध्यक्ष बबीता तातेड़ व आभार महिला मंडल की मंत्री नीतू बोथरा ने किया। संचालन मुनि कुणाल कुमार ने किया। द्वितीय चरण में प्रेक्षा प्रशिक्षिका मंजु सिपानी अनुप्रेक्षा करवाई।