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हृदयाघात का एक बड़ा कारण है - मोह की प्रबलता
मुनि तत्त्वरुचि जी 'तरुण' ने कहा कि - वर्तमान में हार्टअटैक की समस्या बहुत बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि हृदयाघात का एक बड़ा कारण मोह की प्रबलता है। मोह-ममत्व भीतरी बीमारी है। इसका निदान और निराकरण बाह्य साधनों से संभव नहीं है। अध्यात्म और धर्मध्यान ही इसका सटीक उपाय है। भिक्षु साधना केंद्र, श्यामनगर में 'ह्रदयाघात कारण और निवारण' विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। मुनिश्री ने कहा कि - मोह सर्व समस्याओं का जनक और दु:ख का मूल है। काम, क्रोध, अहंकार, ममकार, माया, लोभ, लालच, भय आदि सभी मोह का परिवार है। राग-द्वेष मोह की पैदाइश है। इनकी प्रबलता से शारीरिक, मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
मुनि संभवकुमार जी ने कहा - मोह का उदय बंधन में डालता है और मोह विलय बंधन मुक्ति का मार्ग है। मोह उदय संसार है और उसका विलय संसार से सिद्धि का मार्ग है। आत्मा की उन्नति-अवनति का कारण मोह का उतार-चढ़ाव ही तो है। चरित्र का ह्रास और विकास क्रम भी मोह क्रम से जुड़ा हुआ है। नैतिक-अनैतिक आचरण में भी मोह की भूमिका है।प्रवचन का क्रम नमस्कार महामंत्र व तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी और सुविधिनाथ जी की स्तुति से हुआ। महाप्राण ध्वनि, कायोत्सर्ग व श्वास प्रेक्षा आदि के प्रयोग भी करवाए गए ।